सोयाबीन (सौ. सोशल मीडिया )
Amravati News In Hindi: राज्य में सोयाबीन को गारंटी मूल्य खरीद प्रक्रिया शुरू करने को लेकर अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया है। पिछले साल अक्टूबर में ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन इस साल जिला स्तर पर इस संबंध में आदेश न मिलने से किसानों में भारी अनिश्चितता बनी हुई है।
गारंटी मूल्य खरीद केंद्र शुरू होंगे या नहीं, इसे लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है, जिससे किसानों की आर्थिक मुश्किलें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं।
अमरावती संभाग में इस साल खरीफ सीजन में 13।47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुआई हुई है। सोयाबीन की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है। सरकार ने इस साल खरीद केंद्रों के आवंटन को लेकर नई नीति बनाई है। इसमें केंद्रों के संचालन के लिए किसान उत्पादक कंपनियों के चयन की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है।
विदर्भ सहकारी विपणन महासंघ और महाराष्ट्र राज्य सहकारी विपणन महासंघ की खरीद प्रक्रिया बाधित हो गई है और अब महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन मंडल को नोडल एजेंसी के रूप में शामिल किया गया है। यह सारा असमंजस नियमों में बदलाव के कारण पैदा हुआ है कि किन संस्थाओं को खरीद केंद्र दिए जाएं, जिससे खरीद केंद्र खुलने में काफी समय लग रहा है। इस वजह से जिला प्रशासन के अधिकारी भी निश्चित जानकारी नहीं दे पा रहे हैं।
गारंटी मूल्य खरीदी केंद्र शुरू न होने और सरकार की ओर से स्पष्ट दिशा-निर्देश न मिलने के कारण बाजार में सोयाबीन की कीमतों में भारी गिरावट आई है। फिलहाल बाजार में नया सोयाबीन 3,500 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिक रहा है। किसान बता रहे हैं कि कुछ जगहों पर सोयाबीन के दाम गारंटी मूल्य से 1,000 रुपये कम पर बिक रहे हैं।
इस साल अगस्त और सितंबर में हुई भारी बारिश के कारण मूंग, उड़द समेत अन्य फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इसलिए खरीफ सीजन की पहली फसल सोयाबीन किसानों के हाथ में है। कई किसान दिवाली मनाने और अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आनन-फानन में सोयाबीन बेचने को मजबूर हैं। किसानों की इसी बात का लाभ उठाकर बाजार में फिलहाल सोयाबीन की कम दामों पर खरीद हो रही है।
सरकार खरीद में देरी का कारण ‘सोयाबीन में नमी’ बता रही है। फिलहाल कटाई के बाद बाजार में आने वाले सोयाबीन में नमी की मात्रा 18 से 25 प्रतिशत के बीच है, जबकि केंद्र द्वारा तय नियमों के अनुसार, 12 प्रतिशत तक नमी वाले सोयाबीन खरीदे जाते हैं। हालांकि किसानों को अंदाज है कि नमी कम होने पर दाम बढ़ सकते हैं, लेकिन ‘नमी’ के कारण उन्हें घाटे में बेचना पड़ रहा है।
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किसानों को यह नहीं पता कि उनके माल में कितनी नमी है, इसलिए उनके पास खरीददारों की बात पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कीमतें फिलहाल नमी के बजाय किसानों की मजबूरी को ध्यान में रखकर तय की जा रही हैं। किसान संगठनों ने सरकार से तुरंत फैसला लेने और खरीद के स्पष्ट आदेश जारी करने की मांग की है।