महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या
मुंबई. कृषि प्रधान देश कहा जाने वाला भारत फिलहाल किसानों की कई समस्याओं से घिरा हुआ है। उनका दर्द समझ पाना शायद ही किसी के बस की बात था। जिसकी वजह से किसानों के आत्महत्या के भी केस बढ़ते जा रहे हैं। आज के हालतों पर सरकार कुछ नहीं कर पा रही है। कुदरत भी किसानों के साथ खिलवाड़ करता दिखाई दे रहा है। इस समय देश में कहीं बारिश हद से ज्यादा हो रही है, तो कही किसान उसकी राह ताक रहे हैं। जिसके बाद अब सवाल यह बन गया है कि किसानों की हालत के लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाए, सरकार को, मौसम को या खुद किसान ही अपनी हालत का जिम्मेदार है।
बात करें सिर्फ महाराष्ट्र की तो यहां इस साल के शुरुआती छह महीने में 1,267 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। सबसे ज्यादा 687 आत्महत्याएं विदर्भ क्षेत्र में हुई। राज्य सरकार की एक रिपोर्ट में दिये गए जनवरी से जून तक के आंकड़ों के अनुसार, विदर्भ के अमरावती मंडल में सबसे अधिक 557 किसानों ने खुदकुशी की है। छत्रपति संभाजीनगर मंडल 430 किसानों की मौत के साथ दूसरे स्थान पर है। नासिक मंडल में 137, नागपुर मंडल में 130 और पुणे मंडल में 13 किसानों की मौतें हुईं। तटीय कोंकण मंडल में किसी किसान के आत्महत्या करने का मामला सामने नहीं आया है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, 2022 में देश में किसानों द्वारा की गई आत्महत्या के 37.6 प्रतिशत मामले महाराष्ट्र से थे जो सर्वाधिक था। एनसीआरबी ने कहा कि 2022 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 11,290 लोगों ने अपनी जान दे दी, जिनमें 5,207 किसान और 6,083 खेतिहर मजदूर थे। यह देश में आत्महत्या के कुल मामलों का 6.6 प्रतिशत है।
साल 2021 में, कृषि कार्यों में शामिल 10,881 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 5,318 किसान और 5,563 खेतिहर मजदूर थे। इनमें से 37.3 प्रतिशत मौतें महाराष्ट्र में हुईं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में कुल 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की और आत्महत्या करने वालों में कृषि कार्यों से जुड़े लोगों की संख्या 6.6 प्रतिशत थी। वर्ष 2020 में, कृषि क्षेत्र से जुड़े कुल 10,677 व्यक्तियों ने आत्महत्या की। इनमें 5,579 किसान और 5,098 खेतिहर मजदूर शामिल थे। यह देश भर में दर्ज किये गए आत्महत्या के मामलों का सात प्रतिशत था। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महाराष्ट्र का योगदान सर्वाधिक है। (एजेंसी इनपुट के साथ)