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-सीमा कुमारी
‘स्कन्द षष्ठी’ (Skanda Sashti) दक्षिण भारत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्योहार हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है। इस प्रकार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी 6 फरवरी को है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के अग्रज पुत्र कार्तिकेय की पूजा-उपासना की जाती है।
देवों के सेनापति भगवान कार्तिकेय को स्कंददेव, महासेन, पार्वतीनन्दन, षडानन, मुरुगन, सुब्रह्मन्य आदि नामों से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि, इस व्रत को करने से दीर्घायु और प्रतापी संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही व्रती के जीवन से दुःख और दरिद्रता भी दूर हो जाती है। आइए जानें पूजा विधि और व्रत महत्व –
पंचांग के अनुसार, स्कन्द षष्ठी तिथि 6 फरवरी को देर रात 3 बजकर 46 मिनट पर शुरु होकर अगले दिन 7 फरवरी को प्रात: काल 4 बजकर 37 मिनट पर समाप्त होगी।
अत: व्रती कार्तिकेय देव की पूजा उपासना 6 फरवरी को दिन में कर सकते हैं।
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जो देवों के सेनापति कार्तिकेय की माता हैं। अतः स्कन्द देव की पूजा करने से स्कंदमाता भी प्रसन्न होती हैं और व्रती के सभी मनोरथ सिद्ध करती हैं।
इस दिन दक्षिण भारत में विशेष पूजा-उपासना की जाती है, जिसमें भगवान कार्तिकेय का आह्वान किया जाता है। स्कन्द षष्ठी कार्तिक महीने की षष्ठी को विशेष रूप से मनाया जाता है।