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सीमा कुमारी
नवभारत डिजिटल टीम: सनातन धर्म में वैसे तो हर महीने की अमावस्या खास होती है। लेकिन, अश्विन माह में आने वाली अमावस्या को सबसे ज्यादा खास मानी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि, इस दिन को सर्वपितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है और यह पितृ पक्ष का अंतिम दिन भी होता है। इस वर्ष 2023 ‘सर्वपितृ अमावस्या’ (Sarva Pitru Amavasya 2023) 14 अक्टूबर के दिन पड़ रही है और इसी दिन साल का अंतिम सूर्य ग्रहण (Surya Grahan 2023) भी लगेगा। ऐसे में कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन किस समय श्राद्ध कर्म, पिंडदान व तर्पण इत्यादि कर्म करना चाहिए? आइए जानें सर्वपितृ अमावस्या की तिथि और इसका महत्व –
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 13 अक्टूबर रात्रि 9 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी और 14 अक्टूबर मध्य रात्रि 11 बजकर 24 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। वहीं इस दिन सूर्य ग्रहण का समय रात 8 बजकर 34 मिनट से रात्रि 2 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। यह वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा, जो भारत में दर्शनीय नहीं होगा। जिस वजह से यहां सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।
मान्यता है कि पितृ पक्ष के 15 दिनों में पितृ मृत्युलोक में आते हैं और अपने परिजनों के बीच रहते हैं। इस दौरान श्राद्ध-तर्पण से उनकी क्षुधा-प्यास शांत होती है। इसके बाद सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को सम्मान पूर्वक विदाई दी जाती है। उनकी मुक्ति के लिए सर्व पितृ अमावस्या के मौके पर पितरों का तर्पण-पूजन और विदाई आवश्यक माना जाता है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन दान-पुण्य और गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना भी उत्तम माना जाता है।