
नई दिल्ली: हर साल अश्विन मास की अमावस्या को लक्ष्मी पूजन के बाद कार्तिक शुद्ध प्रतिपदा को बलिप्रतिपदा दीपावली पाडवा के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार खास कर महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस दिन को महाराष्ट्रीयन लोगों द्वारा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन के महत्व को कई पहलुओं में बताया गया है जैसे सोना खरीदना, सुहागिनों द्वारा पति की आरती करना, व्यापारियों के लिए वर्ष की शुरुआत। यह सभी कार्य दिवाली पड़वा के दिन किये जाते है।
पंचरंगी रंगोली से बलि की प्रतिमा बनाकर पड़वा की पूजा की जाती है। ‘इडा, पीडा टळो आणि बळीचे राज्य येवो’ ऐसा महाराष्ट्रीयन लोग मराठी में कहकर इस दिन प्रार्थना करते है। आतिशबाजी भी की जाती है, साथ ही दीपोत्सव भी होता है। इस दिन की विशेषता यह है कि इसे तीन शुभ तिथियों में से एक माना जाता है।
महाराष्ट्र में सभी त्योहार, जिन्हें हमारी कृषि संस्कृति के कारण पौराणिक महत्व दिया गया है, मुख्य रूप से इसी प्रकृति पर आधारित हैं। पौराणिक महत्व और कृषि संस्कृति को प्रतिबिंबित करने वाले कार्तिक मास की शुरुआत बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है।






