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सिर साटे, रूंख रहे, तो भी सस्तो जांण… वनों के लिए अमृत बनी अमृता देवी, संरक्षण के लिए त्यागे प्राण

National Forest Martyers Day: राजस्थान के जोधपुर में खेझरली या खेजड़ली गांव की अमृता देवी ने वन को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे उनके साथ उनकी बेटियां और 363 वन शहीद भी शामिल रहे।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Sep 11, 2025 | 08:59 AM

राष्ट्रीय वन शहीद दिवस (सौ. सोशल मीडिया)

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Importance National Forest Martyers Day: हमारे लिए वन बेहद जरूरी है तो वहीं पर पर्यावरण की यह सबसे पुरानी धरोहर भी। पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयास निरंतर किए जाने चाहिए इस उद्देश्य से हर साल 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है। वन शहीद दिवस मनाने के पीछे जाबांज महिला अमृता देवी की कहानी मिलती है। राजस्थान के जोधपुर में खेझरली या खेजड़ली गांव की अमृता देवी ने वन को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे उनके साथ उनकी बेटियां और 363 वन शहीद भी शामिल रहे। कैसे अमृता देवी ने वन सरंक्षण के लिए ऐसा कदम उठाया है चलिए जानते है इसके बारे में।

इतिहास के पन्नों में दर्ज है यह योगदान

बताया जाता है कि, 11 सितंबर 1730 को जोधपुर में मारवाड़ राजा अभय सिंह का शासन था। उस दौरान राजा एक नया महल बनाने की योजना बना रहे थे जिसके लिए उन्हें लकड़ियों की जरूरत पड़ी। इसके लिए राजा अभय सिंह ने रियासत के हाकिम गिरधारी दास भंडारी के नेतृत्व में अपने कर्मचारियों को खेजड़ी काट कर लाने के लिए भेजा। यह खेजड़ी के पेड़ खेजड़ली गांव में थे। यह गांव राजस्थान का ऐसा क्षेत्र है जहां पर एरिया में ज्यादातर भूमि बंजर है. पेड़ कम हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) है।इस छोटे सदाबहार पेड़ को थार रेगिस्तान की जीवन रेखा मानते हैं, इसकी पत्तियां ऊंटों, बकरियों, मवेशियों और अन्य जानवरों को चारा प्रदान करती हैं। इसके साथ इसकी फलियां खाने योग्य होती हैं और लकड़ी ईंधन हैं. इसकी जड़ें वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करती हैं, जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है।

पेड़ से लिपटकर निभाया धर्म

बताया जाता है कि, जैसै ही अमृता देवी बिश्नोई को इस बात की जानकारी मिली कि राजा पेड़ों को काटने के लिए आ रहे है। वे जाकर पेड़ से लिपट गईं और अमृता देवी ने राजा के सैनिकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध के बीच राजा ने अपने सैनिकों को हुकुम दिया कि, वे कुल्हाड़ी चला दें, जहां पर राजा के लोगों ने पेड़ के साथ उन्हें भी कुल्हाड़ी से काट दिया। इस दौरान 383 लोगों के साथ अमृता देवी की बेटियां आसू, भागू और रत्नी भी पेड़ को बचाते हुए मारी गई।

ये भी पढ़ें-इन हेल्थ प्रॉब्लम्स से परेशान महिलाओं के लिए सही नहीं होता है आइस बाथ, फॉलो करने से पहले जान लें बात

उस दौरान शहीद होने से पहले अमृता देवी ने कहा था-सिर साटे, रूंख रहे, तो भी सस्तो जांण. जिसका अर्थ है कि – “यदि किसी व्यक्ति की जान की कीमत पर भी एक पेड़ बचाया जाता है, तो वह सही है.” बिश्नोई समाज इस वाक्य को अपनी दिलों-जुबां पर रखता है। इस घटना के बाद राजा को जब ऐसे नरसंहार की सूचना मिली तो वे आत्मग्लानि में डूब गए। महल न बनाने और बिश्नोई गांव के आसपास शिकार न करने का आदेश दिया। खेजड़ी पेड़ को राजवृक्ष घोषित किया गया है।

Amrita devi along with 363 people sacrificed their lives by cutting a khejri tree on september 11

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Published On: Sep 11, 2025 | 08:59 AM

Topics:  

  • Forest Area
  • Forest Department
  • Lifestyle News

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