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लीज नवीनीकरण पर स्टाम्प शुल्क जरूरी, हाई कोर्ट ने खारिज की याचिकाएं, सरकार के अधिकार को दी थी चुनौती

High Court: महाराष्ट्र स्टाम्प अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं। साथ ही स्थायी लीज के नवीनीकरण पर स्टाम्प शुल्क लगाए जाने के सरकारी फैसले को भी चुनौती दी।

  • By प्रिया जैस
Updated On: Oct 24, 2025 | 10:58 AM

हाई कोर्ट (फाइल फोटो)

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Nagpur News: महाराष्ट्र स्टाम्प अधिनियम, 1958 के अनुच्छेद 36 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए तेजोमय अपार्टमेंट्स कोंडोमिनियम और न्यू रामदासपेठ गृह निर्माण सहकारी संस्था लिमिटेड और मैसर्स ग्रीन इंडिया इन्फ्रा की ओर से हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं। साथ ही स्थायी लीज के नवीनीकरण पर स्टाम्प शुल्क लगाए जाने के सरकारी फैसले को भी चुनौती दी गई।

इस पर दोनों पक्षों की लंबी दलीलों के बाद न्यायाधीश अनिल किल्लोर और न्यायाधीश रजनीश व्यास ने जहां स्थायी लीज के नवीनीकरण पर स्टाम्प शुल्क लगाने के महाराष्ट्र सरकार के अधिकार को बरकरार रखा वहीं रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं का तर्क यह था कि संपत्ति के पूर्ण बाजार मूल्य पर स्टाम्प शुल्क पहले ही लिया जा चुका है, इसलिए स्थायी लीज के प्रत्येक नवीनीकरण के समय स्टाम्प शुल्क लगाना मनमाना है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 300 ए का उल्लंघन करता है।

लीज एग्रीमेंट पर लगनेवाला कर

तेजोमय अपार्टमेंट्स कोंडोमिनियम ने विरोध स्वरूप 30 वर्ष की अवधि के नवीनीकरण के लिए भुगतान किए गए 34,26,500 रुपये की राशि को 12% ब्याज के साथ वापस करने का भी निर्देश देने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने तर्क दिया कि स्थायी लीज के नवीनीकरण को केवल किराया नवीनीकरण समझौता माना जाना चाहिए क्योंकि यह कोई नया अधिकार पैदा नहीं करता है।

उन्होंने इसे एकल लेन-देन बताया। इसके विपरीत राज्य की ओर से एडवोकेट जनरल बीरेंद्र सर्राफ ने तर्क दिया कि स्टाम्प शुल्क लेन-देन पर नहीं बल्कि लिखत पर लगने वाला कर है। उन्होंने कहा कि नवीनीकरण एक नया लीज एग्रीमेंट है। इसलिए सरकार महाराष्ट्र स्टाम्प अधिनियम, 1958 के अनुच्छेद 25 और 36 के तहत स्टाम्प शुल्क लेने के लिए हकदार है।

विस्तार और नवीनीकरण अलग पर्याय

अदालत ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा किया और ‘विस्तार’ और ‘नवीनीकरण’ (Renewal) के बीच स्पष्ट अंतर किया। कोर्ट ने कहा कि ‘विस्तार’ का अर्थ है उसी अनुबंध का जारी रहना और यह एकतरफा प्रक्रिया से किया जा सकता है जबकि ‘नवीनीकरण’ का अर्थ है एक नए कानूनी संबंध का निर्माण या पुराने अनुबंध के स्थान पर एक नया अनुबंध लाना। नवीनीकरण एक द्विपक्षीय प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है जिसके लिए एक पंजीकृत एग्रीमेंट की आवश्यकता होती है। कोर्ट ने दोहराया कि कर (स्टाम्प शुल्क) एग्रीमेंट पर लगाया जाता है।

यह भी पढ़ें – न्यू नागपुर बनेगा बिजनेस डिस्ट्रिक्ट, मुख्यमंत्री फडणवीस ने की घोषणा, 15 दिन में होंगे ये बड़े फैसले

29 वर्ष से अधिक पर शुल्क लगाने का प्रावधान

न्यायालय ने पाया कि वर्तमान मामला महाराष्ट्र स्टाम्प अधिनियम, 1958 के अनुच्छेद 36(iv) के अंतर्गत आता है। यह उन पट्टों पर स्टाम्प शुल्क लगाने का प्रावधान करता है जिनकी अवधि 29 वर्ष से अधिक है या जो स्थायी हैं या जिनमें नवीनीकरण का विकल्प शामिल है। न्यायालय ने इस आधार पर याचिकाकर्ताओं के तर्कों को अस्वीकार कर दिया कि चूंकि पट्टे का नवीनीकरण एक नया अधिकार और दायित्व पैदा करता है, इसलिए इसे केवल किराया नवीनीकरण समझौता नहीं माना जा सकता है। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दीं।

Stamp duty required lease renewals high court dismissed petitions

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Published On: Oct 24, 2025 | 10:58 AM

Topics:  

  • High Court
  • Maharashtra
  • Nagpur
  • Nagpur News

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