बिहार की राजनीति (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: बिहार में बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी और लोजपा नेता रामविलास पासवान के निधन के बाद अब नई पीढ़ी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वास्थ्य के मोर्चे पर चुनौतियां झेल रहे हैं और राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने पार्टी की कमान अपने बेटे तेजस्वी को सौंप रखी है जो राज्य में विपक्षी संगठन ‘इंडिया’ का नेतृत्व कर रहे हैं। जीतनराम मांझी का बेटा भी मैदान में है। अपने बेटे को राजनीति में लाने को नीतीश कुमार के प्रयासों को विशेष सफलता नहीं मिल पाई। इसलिए जदयू का भविष्य अनिश्चित नजर आता है।
राजनीति की नब्ज को अच्छी तरह जाननेवाले नीतीश कुमार गठबंधनों के बीच पलटी मारते रहे हैं जिसका उन्हें राजनीतिक लाभ मिला। जदयू-राजद गठबंधन सरकार में वह मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद बीजेपी से गठजोड़ के बाद भी उनका सीएम पद बरकरार रहा। एनडीए ने 2020 में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था जबकि बीजेपी संख्या बल में बड़ी पार्टी थी लेकिन उसके पास मुख्यमंत्री का चेहरा रखनेवाला नेता उपलब्ध नहीं था। सुशील कुमार मोदी राजनीति के दांवपेंच से दूर सीधे-सरल नेता थे। उस चुनाव में बीजेपी को 74 तथा जदयू को 43 सीटें मिली थीं। दूसरी ओर यूपीए ने कुल 110 सीटें जीती थी जिनमें राष्ट्रीय जनता दल की 75 और कांग्रेस की 19 सीटों का समावेश था। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 21 प्रतिशत वोट शेयर के साथ बिहार की कुल 40 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की थी।
जदयू ने 19 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 12 सीटें जीती थीं। चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) ने 7 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सभी 5 लोकसभा सीटें जीती थीं। इसके बाद चिराग पासवान को केंद्रीय मंत्री बनाया गया। राजद ने सिर्फ 4 सीटें जीती थीं। चिराग पासवान महत्वाकांक्षी हैं और बिहार का मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश रखते हैं। बिहार में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान जैसे युवा नेता ही असली खिलाड़ी साबित हो सकते हैं। बिहार में 2022 में जाति सर्वेक्षण कराया गया था। अब विधानसभा चुनाव में जाति जनगणना और अवैध प्रवासी का मुद्दा प्रमुख रह सकता है।
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बिहार में जातिवाद की जड़ें पहले से काफी गहरी रही हैं। बाढ़ से आनेवाली आपदा, ढहते पुल, जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था, गरीबी, बेरोजगारी, श्रमिकों का पलायन सर्वे करने के विषय हो सकते हैं, चुनाव के नहीं! मतदाता सूची का पुनरीक्षण चुनाव तक शायद ही पूरा हो पाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा कि पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है? सुनवाई का मौका दिए बिना किसी का भी नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा