सुप्रीम कोर्ट (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: साल 2024 में देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐसे फैसले सुनाए हैं, जो देश की संवैधानिक और न्यायिक व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित होने वाले हैं। जाहिर है, कोर्ट के फैसले हर किसी को खुशी नहीं देते। कुछ लोगों को इससे काफी राहत मिलती है, तो कुछ को दुख भी होता है। हालांकि, एक साल में सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐसे फैसले सुनाए हैं, जो देश की एक बड़ी आबादी के लिए मायने रखते हैं।
अगर हम हर एक बड़े फैसले का जिक्र करेंगे तो मामला काफी लंबा हो जाएगा। इसलिए हम यहां सिर्फ 10 चुनिंदा फैसलों की चर्चा कर रहे हैं जिनकी जमकर चर्चा हुई है। इन फैसलों में सुप्रीम अदालत ने कई बार सरकारों को आईना दिखाया है तो कई बार विपक्ष को भी नसीहत दी है। चलिए जानते हैं—
इस साल 15 फरवरी को, लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा से ठीक पहले, सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को सर्वसम्मति से रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने इसे ‘असंवैधानिक और स्पष्ट रूप से मनमाना’ करार दिया। यह फ़ैसला CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय पीठ ने सुनाया। अदालत ने कहा कि चुनावी बॉन्ड के ज़रिए राजनीतिक फंडिंग के स्रोत का पूरी तरह से खुलासा न करना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
इस साल मई में एक बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव नजदीक हैं और ऐसी याचिकाओं से ‘अराजकता’ और ‘अनिश्चितता’ पैदा होगी। यह देखते हुए कि चुनाव आयोग ‘कार्यपालिका के अधीन’ नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की शर्तें) अधिनियम, 2023 के संचालन पर कोई अंतरिम रोक लगाने से भी इनकार कर दिया।
इस साल 13 नवंबर को अपने बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर न्याय’ की व्यवस्था पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी और यहां तक कि दोषियों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई अवैध और असंवैधानिक है। जहां तक अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की बात है तो इसके लिए शीर्ष अदालत ने दिशा-निर्देश तय किए हैं, जिसके तहत 15 दिन पहले नोटिस देना जरूरी है। अगर दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करके कार्रवाई की जाती है तो संबंधित अधिकारियों को जुर्माना भरना पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करके जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य का विशेष दर्जा हटाने के केंद्र सरकार के 5 अगस्त, 2019 के फैसले को बरकरार रखने वाले अपने दिसंबर 2023 के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। पांच सदस्यीय पीठ का नेतृत्व कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समीक्षा याचिकाओं को देखने के बाद रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं पाई गई।
इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय पीठ (6-1) ने फैसला सुनाया कि अनुसूचित जातियों (SC) में अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग कोटा सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों (SC) का उप-वर्गीकरण उचित है। इस फैसले का मतलब है कि राज्य दलितों में अधिक पिछड़े लोगों की पहचान कर सकता है और उन्हें उनके लिए उपलब्ध आरक्षण से अलग कोटा प्रदान कर सकता है।
इस साल 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जेलों में जाति के आधार पर ‘भेदभाव’ और ‘अलगाव’ संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने कहा कि शायद किसी खास जाति से सफाईकर्मियों का चयन करना पूरी तरह से समानता के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि जेलों में इस तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं दी जा सकती।
9 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सज़ा पाए दोषियों की दया याचिकाओं पर त्वरित और उचित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए। सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से न्याय व्यवस्था पर आम लोगों का भरोसा कायम रखने के साथ-साथ सज़ा में अनावश्यक देरी के कारण मौत की सज़ा पाए दोषियों पर भी लगाम लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से दया याचिकाओं से जुड़े मामलों के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने को भी कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर के अपने फैसले में कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्री को डाउनलोड करना और रखना भी अपराध की श्रेणी में आएगा। कोर्ट के मुताबिक अगर संबंधित व्यक्ति ऐसी सामग्री को डिलीट नहीं करता या पुलिस को सूचना नहीं देता तो यह POCSO की धारा 15 के तहत अपराध है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी रखना या डाउनलोड करना तब तक अपराध नहीं है, जब तक कि उसे किसी को भेजा न जाए।
गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया था। ये सभी दोषी 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या में शामिल थे। इस साल की शुरुआत में 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए दोषियों की रिहाई को न्याय के सिद्धांत के खिलाफ बताया था।
शराब घोटाले के आरोप में फरवरी 2023 में गिरफ्तार किए गए दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को इस साल 9 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया था क्योंकि इस मामले में अभी सुनवाई शुरू नहीं हुई है। कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को इस तरह अनिश्चित काल तक जेल में नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे लंबे समय तक जेल में रखना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को भी जमानत दे दी है।
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