मुहम्मद अली जिन्ना और जवाहरलाल नेहरू (सोर्स- सोशल मीडिया)
Vande Matram Row: वंदे मातरम की 150वीं सालगिरह पर पार्लियामेंट में बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को आज़ादी से पहले की राजनीति के सबसे विवादित अध्यायों में से एक पर बात की। उन्होंने बताया कि 1930 के दशक में मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने राष्ट्रीय गीत का विरोध क्यों किया था। उन्होंने कांग्रेस के गाने में बदलाव के पीछे के कारण भी बताए।
प्रधानमंत्री मोदी ने जवाहरलाल नेहरू के नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखे 1937 के एक लेटर का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि नेहरू का मानना था कि बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास “आनंदमठ” में गाने की सेटिंग “मुसलमानों को परेशान कर सकती है।”
पीएम मोदी ने तर्क दिया कि इस समय ने राजनैतिक एतराज पैदा किए, जिसके कारण आखिरकार राष्ट्रगीत में बदलाव किया गया। प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने सांप्रदायिक सद्भाव के नाम पर मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक दिए थे। उन्होंने इसे एक पॉलिटिकल समझौता बताया जो बाद में बंटवारे के समय के फैसलों तक बढ़ा।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का 1875 में लिखा गया यह गाना पहली बार ‘बंगदर्शन’ में पब्लिश हुआ था। वंदे मातरम तेज़ी से लिटरेचर से निकलकर नेशनल मूवमेंट की पॉलिटिकल सोच तक फैल गया। बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे म्यूज़िक दिया। यह गाना बंगाल और उसके बाहर आज़ादी के लड़ाकों के लिए एक ज़बरदस्त नारा बन गया। 1937 में कांग्रेस ने गाने के एक बदले हुए वर्जन को राष्ट्रगीत के तौर पर अपनाया। 1951 में राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली संविधान सभा में इसे आधिकारिक मान्यता मिली। जन गण मन को ‘राष्ट्रगान’ के तौर पर अपनाया गया।
1930 के दशक के आखिर तक मुस्लिम लीग ने ‘वंदे मातरम’ के खिलाफ एक ज़ोरदार कैंपेन शुरू कर दिया था। 15 अक्टूबर, 1937 को लखनऊ में एक मीटिंग में मोहम्मद अली जिन्ना ने इस गीत की निंदा की। उन्होंने कहा कि इसमें दुर्गा और लक्ष्मी जैसी हिंदू देवियों का जिक्र है, इसलिए यह मुस्लिम भावनाओं के हिसाब से नहीं है।
वंदे मातरम विवाद-सांकेतिक तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
इंडियन एक्सप्रेस आर्काइव्ज़ के मुताबिक, एतराज दो मुख्य बातों पर आधारित था। पहला ये कि वंदे मातरम मूर्तिपूजक था। दूसरा ये कि यह नेशनल पॉलिटिक्स में उभर रहे सेक्युलर और सबको साथ लेकर चलने वाले आदर्शों के हिसाब से नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक, लीग के दावों का विरोध करने के बावजूद कांग्रेस ने गाने के इस्तेमाल पर फिर से सोचना शुरू कर दिया था। 26 अक्टूबर 1937 को पार्टी ने समुदायों के बीच सद्भाव का हवाला देते हुए गीत के कुछ खास हिस्सों का ही इस्तेमाल करने का फैसला किया।
प्रधानमंत्री ने इस तर्क को इमरजेंसी के समय तक बढ़ाया। उन्होंने कहा कि जब राष्ट्रगान के 100 साल पूरे हुए तो संविधान का ही गला घोंट दिया गया। उन्होंने 150वीं सालगिरह को उस गर्व और सम्मान को वापस लाने का मौका बताया, जिसने कभी स्वतंत्रता सेनानियों को एकजुट किया था।
एक और अहम मोड़ पंडित जवाहरलाल नेहरू के मई 1948 में लिखे कैबिनेट नोट से आता है। नेहरू ने तर्क दिया कि एक राष्ट्रगान के लिए संगीत की दुनिया भर में पहचान होनी चाहिए। यह इतना आसान होना चाहिए कि ऑर्केस्ट्रा इसे बजा सके और विदेशों में इसकी तारीफ हो सके।
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उन्होंने लिखा कि वंदे मातरम की गहरी ऐतिहासिक और भावनात्मक कीमत है। हालांकि, इसकी धुन दुख भरी, दोहराव वाली और ऑर्केस्ट्रा के लिए मुश्किल थी। इसके उलट ‘जन गण मन’ ऑर्केस्ट्रा और मिलिट्री बैंड के लिए संगीत के हिसाब से ज्यादा सही है। महात्मा गांधी और कांग्रेस नेताओं के सहयोग से वंदे मातरम के केवल पहले दो छंदों को ही राष्ट्रगीत के रूप में रखा गया।