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आजादी की अनसुनी दास्तान: वो नारे जिनसे कांपती थी अंग्रेजी हुकूमत, बौखलाहट में बंद करवा देते थे आवाज

Independence Day Special: सड़कों पर उमड़ती भीड़, हाथों में तिरंगा, और गूंजते नारे। कुछ ऐसा था सन 1930 का भारत। ये दौर था जब सिर्फ लाठी-तलवार ही नहीं, शब्द भी अंग्रेजी हुकूमत के लिए हथियार बन गए थे।

  • By प्रतीक पांडेय
Updated On: Aug 14, 2025 | 10:27 AM

लोगों को संबोधित करते महात्मा गांधी, फोटो: सोशल मीडिया

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Untold Story of Independence: गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे सभी आंदोलनों ने यह साबित कर दिया था कि आजादी की लड़ाई सिर्फ मैदान में नहीं, बल्कि कलम, कविता और गीतों में भी लड़ी जा सकती है। अंग्रेजी हुकूमत को नारेबाजी और गीतों से भी परास्त करने की मुहिम शुरू की गई। नतीजा ये निकला कि अंग्रेज नारे लगाने पर रोक-टोक करने लगे और जेल में डालने लगे।

अंग्रेजी सरकार के लिए सबसे बड़ा डर था जनता के बीच फैलता यह शब्द-संग्राम। “वंदे मातरम्”, “सत्याग्रह जिंदाबाद”, और “अंग्रेज भारत छोड़ो” जैसे नारे, उनके कानों में सिर्फ आवाज नहीं, बल्कि विद्रोह की घंटी थे। हुकूमत ने बार-बार इन नारों और कविताओं पर प्रतिबंध लगाया, क्योंकि वे जानते थे जब जुबां बोलना सीख जाती है, तो हथियार की जरूरत कम पड़ जाती है।

गांधी के नारे, एक नई लड़ाई का बिगुल

गांधीजी ने हिंसा नहीं, बल्कि सत्य और अहिंसा को हथियार बनाया। उनका चरखा सिर्फ सूत नहीं कातता था, वह आत्मनिर्भरता का संदेश बुनता था। एक प्रतिबंधित कविता में लिखा गया था-

“हमें ये स्वराज्य दिलाएगा चर्खा,
खिलाफत का झगड़ा मिटाएगा चर्खा…”

अंग्रेजी हुकूमत इस बात से घबरा उठी कि लोग स्वदेशी अपनाने लगे हैं, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कर रहे हैं, और गांव-गांव में चरखे की घर्र-घर्र एक क्रांति का संगीत बजा रही है। गांधीजी के जीवन, उनके विचार, और उनके आंदोलनों पर हजारों कविताएं लिखी गईं। इन कविताओं में कभी उनका महिमामंडन हुआ, तो कभी सीधे-सीधे अंग्रेजों को ललकारा गया। एक कविता में लिखा था-

“ऐ मादरे हिन्द न हो गमगीन, दिन अच्छे आने वाले हैं,
मगरूरों को अब मजा चखाने वाले हैं।”

ऐसी पंक्तियां सुनकर हुकूमत का खून खौल उठता था। यही वजह थी कि 3000 से अधिक रचनाएं ‘प्रतिबंधित साहित्य’ की श्रेणी में डाल दी गईं। इससे साथ ही महिलाओं की आवाज भी हथियार बनी। आजादी की इस लड़ाई में महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। गांधीजी के आह्वान पर उन्होंने विदेशी कपड़ों को त्यागकर स्वदेशी अपनाया। एक गीत में पत्नी अपने पति से कहती हैं-

“साड़ी ना पहनब विदेशी हो पिया, देशी मंगा दे…”

ये गीत जितना घरेलू था, उतना ही राजनीतिक। यह संदेश था कि लड़ाई घर-घर में लड़ी जा रही है। गांधी बनाम मशीनों की मुहिम पर भी नारे बनाए गए। अंग्रेजा हुकूमत इन नारों से बेहद चिढ़ा करती थी। ब्रिटेन के उद्योग भारतीय बाजार पर निर्भर थे और गांधीजी के चरखे ने इस व्यापार को झटका दे दिया। लंदन में बैठी सरकार परेशान हो उठी। एक कविता में व्यंग्य से लिखा गया-

“भारी भारी मशीनें हैं खाली पड़ीं,
क्योंकि भारत तो चरखे पे शैदा हुआ।”

 

ये पंक्तियां दर्शाती हैं कि गांधीजी का असर सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि औद्योगिक ब्रिटेन को भी हिला गया। अंग्रेजी पुलिस किसी भी व्यक्ति को सिर्फ नारा लगाने पर गिरफ्तार कर सकती थी। “वंदे मातरम्” और “भारत माता की जय” बोलना, अंग्रेजों की नजर में राजद्रोह था। रचनाकार जानते थे कि उनकी कविता छपेगी तो वे जेल जाएंगे, लेकिन उनके लिए यह गर्व की बात थी। एक आल्हा शैली की कविता में गांधीजी की सत्याग्रह की लड़ाई को वीरगाथा की तरह गाया गया-

गांधी जी ने लिखा मित्र वर बृटिश हुकूमत भारी पाप,
दलिद्र इसने बनाया भारत दुख से जनता करै विलाप।
नाश हाथ की भई कताई स्वास्थ हरन अबकारी कीन,
भारी बोझ नमक के कर का दबी है जासे जनता दीन।

जब किसी साम्राज्य को बंदूक नहीं, बल्कि गीत से खतरा महसूस होने लगे तो समझ लीजिए कि असली क्रांति शुरू हो चुकी है। अंग्रेजी हुकूमत ने कविताओं, गीतों, यहां तक कि होली के फगुए तक पर पाबंदी लगा दी। एक प्रतिबंधित होली गीत में साफ-साफ लिखा गया था-

“गोरी शाही से ना मिलहै तुमको एक छदाम,
हमने तुमको बतला दीन्हा सच्चा यह अनुमान।
कौरव पांडव दोऊ दल में मालवि बिदुर समान,
दुर्योधन सम गवर्नमेन्ट से अविश होय अपमान”

गली-मोहल्लों में गाए जाने वाले गीत, चाय की दुकानों पर पढ़ी जाने वाली कविताएं, और सभाओं में गूंजते नारों की ताकत ये थी कि वह शिक्षित से लेकर अनपढ़ तक, सबको एक कर देते थे। इनसे पैदा हुआ जन-आंदोलन पुलिस की लाठी और जेल की सलाखों से भी नहीं रुकता था। गांधीजी के नाम पर निकाले गए जुलूस में लोग उनके विचारों को कविता बनाकर गाते थे। एक प्रसिद्ध दोहा था-

“भारत की बहिने कहें, निज पिय से समझाय,
ऐ मेरे पति देवता, चर्खा देव मंगाय।”

 

आज जब हम लोकतंत्र में खुलकर बोल सकते हैं, तो यह याद रखना जरूरी है कि कभी इस देश में एक नारा लगाने की कीमत जेल थी। गांधीजी और उनके साथियों ने यह साबित किया कि असली ताकत विचार में है, और विचार शब्दों के जरिए फैलते हैं। उन दिनों एक रचनाकार ने लिखा था-

“देखो गांधी जी के मारे, थर-थर कांप रही सरकार,
धरे रहे वाके तोप-तमंचा, धरी रही तरवार।”

यह भी पढ़ें: सबसे बड़ा नरसंहार! खून-आंसू और महिलाओं की चीखें… जानें भारत-पाक बंटवारे का वो खौफनाक सच

अंग्रेजों की तोप-तमंचा इन शब्दों के आगे बेअसर हो गई थी। अंग्रेजी हुकूमत इसलिए नारों से डरती थी क्योंकि नारे लोगों को जोड़ते थे, उन्हें अपने अधिकार के लिए खड़ा करते थे। एक नारा, एक गीत, एक कविता। सब मिलकर वह चिंगारी बनते थे जिसने 200 साल पुराने साम्राज्य को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया। गांधीजी ने हमें यह सिखाया कि लड़ाई सिर्फ तलवार से नहीं, कलम और जुबां से भी जीती जा सकती है।

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Published On: Aug 14, 2025 | 10:15 AM

Topics:  

  • Freedom Day
  • Independence Day
  • Independent India

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