मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (सोर्स- सोशल मीडिया)
Ex CJI BR Gavai: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता, सोशल मीडिया के खतरों और देश की मौजूदा संवैधानिक चुनौतियों पर कई बातें कहीं। उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू दिया जिसमें कई बातों पर अपनी राय रखी।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि देश का संविधान खतरे में है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 1973 का केशवानंद भारती जजमेंट इस विषय पर एकदम स्पष्ट है। उस ऐतिहासिक निर्णय में यह साफ कहा गया था कि संसद संविधान की ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ में बदलाव नहीं कर सकती। उनका मानना है कि संविधान बदला ही नहीं जा सकता।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विषय पर बात करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि यह बात गलत है कि सरकार का ज्यूडिशियरी में कोई हस्तक्षेप होता है। उन्होंने जोर दिया कि सरकार का न्यायपालिका में कोई हस्तक्षेप नहीं है। हालांकि, उन्होंने कॉलेजियम की प्रक्रिया को विस्तार से समझाते हुए कहा कि जब कॉलेजियम कोई निर्णय लेता है, तो कई तरह के फैक्टर्स पर विचार किया जाता है।
इस प्रक्रिया में एग्जीक्यूटिव, आईबी (IB), लॉ मिनिस्ट्री, संबंधित चीफ जस्टिस, जिनका ट्रांसफर हो रहा है, चीफ मिनिस्टर और गवर्नर सभी की राय ली जाती है। लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि कॉलेजियम किसी दबाव में काम करता है।
जस्टिस गवई ने टेक्नोलॉजी को वरदान बताया, लेकिन स्वीकार किया कि सोशल मीडिया का मिसयूज हो रहा है। उनका मानना है कि इसका गलत इस्तेमाल एक बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल से एग्जीक्यूटिव, लेजिस्लेटिव और ज्यूडिशियरी तीनों संस्थाएं प्रभावित हो रही हैं, और सभी को ट्रोल किया जा रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने मांग की कि संसद को कानून बनाना चाहिए।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जज को निर्णय सोशल मीडिया की पसंद-नापसंद देखकर नहीं देना चाहिए। जब सामने तथ्य और सबूत होते हैं, तो फैसला केवल कानून के आधार पर ही होना चाहिए। उन्होंने जजों को व्यक्तिगत रूप से टारगेट करके ट्रोल करने को गलत बताया।
अपने कार्यकाल से संतुष्टि जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि वह पूरी तरह संतुष्ट और खुश हैं। उन्हें नहीं लगता कि कोई ऐसा काम था जिसे वह करना चाहते थे और नहीं कर पाए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदूषण जैसे मामलों पर न्यायपालिका सिर्फ आदेश दे सकती है, लेकिन उसे लागू करने का काम कार्यपालिका का है। उन्होंने रिटायरमेंट के बाद पद लेने को गलत नहीं कहा और वर्तमान में उनका राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं है।
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जस्टिस गवई ने कहा कि उन्होंने भगवान विष्णु वाले विवाद पर ऐसा कुछ कहा ही नहीं था, बल्कि बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया था। बाबा साहेब के सपने और संवैधानिक मूल्यों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि बाबा साहेब ने सिर्फ राजनीतिक न्याय का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय का सपना देखा था। उनका मत है कि तीनों संस्थाओं (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) को मिलकर काम करना चाहिए, ताकि देश के आखिरी नागरिक तक कम खर्च में न्याय पहुंच सके।