तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन (फोटो- सोशल मीडिया)
Tamil Nadu fishermen issue: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को राज्य के मछुआरों की कोई परवाह नहीं है और वह सिर्फ यह बताने में व्यस्त है कि यह द्वीप श्रीलंका को किसने सौंपा। स्टालिन ने कहा कि राज्य सरकार लगातार मछुआरों के पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयास कर रही है, जबकि केंद्र सरकार ने अब तक ठोस कोई कदम नहीं उठाया है।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने मयिलादुथुराई में एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान कहा कि दो अप्रैल 2025 को तमिलनाडु विधानसभा ने कच्चातिवु द्वीप को भारत वापस लाने के लिए प्रस्ताव पारित किया था। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री से हर मुलाकात में वह मछुआरों की सुरक्षा और द्वीप की वापसी की मांग उठाते हैं। स्टालिन ने यह भी कहा कि राज्य सरकार श्रीलंका की जेलों में बंद भारतीय मछुआरों की रिहाई और उनकी जब्त नौकाओं को वापस लाने के लिए केंद्र पर लगातार दबाव बना रही है। सीएम ने कहा कि राज्य ने तो पहल की है लेकिन केन्द्र क्यों मौन है।
केंद्र के पास अधिकार, फिर भी निष्क्रियता क्यों
स्टालिन ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि पिछले 10 वर्षों से बीजेपी सत्ता में है, फिर भी उसने अब तक कच्चातिवु को वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए हैं? उन्होंने पूछा कि क्या केंद्र ने इतना भी सुनिश्चित किया कि श्रीलंका हमारे मछुआरों को गिरफ्तार न करे? उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी प्रतिक्रिया मांगी कि श्रीलंका के विदेश मंत्री द्वारा किए गए आरोपों कि तमिल मछुआरे कच्चातिवु में अतिक्रमण करते हैं पर भारत सरकार का जवाब क्या है।
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कच्चातिवु विवाद का राजनीतिक ताप
बीजेपी और AIADMK, दोनों ही कांग्रेस और द्रमुक को 1974 के समझौते के लिए दोषी ठहराते हैं, जिसमें यह द्वीप श्रीलंका को सौंपा गया था। जबकि स्टालिन का कहना है कि किसी अन्य देश से समझौता करना केंद्र सरकार का अधिकार है, और मौजूदा सरकार ने अब तक इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। तमिलनाडु के मछुआरों के लिए कच्चातिवु एक भावनात्मक और व्यावहारिक मुद्दा है। मुख्यमंत्री स्टालिन की यह टिप्पणी बीजेपी पर सियासी दबाव बनाने की कोशिश जरूर है, लेकिन यह सवाल भी उठाती है कि क्या केंद्र इस संवेदनशील मसले पर कोई निर्णायक पहल करेगा, या यह विषय आगे भी केवल आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझा रहेगा।