अफगानिस्तान के विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकार को किया बाहर (फोटो- सोशल मीडिया)
Afghanistan Foreign Minister Ban Women Journalist: अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी अपनी भारत यात्रा को लेकर चर्चा में हैं, लेकिन किसी कूटनीतिक सफलता के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसे फरमान के लिए जिसने देश की राजधानी दिल्ली में सबको हैरान कर दिया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात के बाद आयोजित उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों के प्रवेश पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई। इस तालिबानी फैसले ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है और सोशल मीडिया पर लोग इसे लेकर भारी गुस्सा जाहिर कर रहे हैं।
यह घटना दिखाती है कि तालिबान की महिला विरोधी नीतियां सिर्फ अफगानिस्तान तक सीमित नहीं हैं। मुत्तकी ने भले ही एस. जयशंकर के साथ व्यापार और सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर चर्चा की हो, लेकिन उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय महिला पत्रकारों को जगह न देना उनकी पिछड़ी सोच को उजागर करता है। यह कदम अफगानिस्तान में महिलाओं की दयनीय स्थिति का प्रतीक है, जहां अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से लड़कियों की पढ़ाई और महिलाओं के काम करने पर गंभीर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं।
I am shocked that women journalists were excluded from the press conference addressed by Mr Amir Khan Muttaqi of Afghanistan In my personal view, the men journalists should have walked out when they found that their women colleagues were excluded (or not invited) — P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) October 11, 2025
यह खबर सामने आते ही पत्रकारों और सोशल मीडिया यूजर्स ने इस कदम को “अस्वीकार्य” बताया। कई लोगों ने कहा कि यह पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। एक यूजर ने लिखा कि यह बेहद शर्मनाक है कि भारत की धरती पर इस तरह की घटना हुई। वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा कि अगर महिला पत्रकारों को अनुमति नहीं थी, तो पुरुष पत्रकारों को भी एकजुटता दिखाते हुए इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार कर देना चाहिए था। यह घटना अफगानिस्तान में महिलाओं के दमन का एक प्रतिबिंब है।
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इस मामले पर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मुझे यह जानकर झटका लगा कि अफगानिस्तान के आमिर खान मुत्तकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को बाहर रखा गया। मेरी राय में पुरुष पत्रकारों को वहां से वॉकआउट कर देना चाहिए था।” चिदंबरम की इस राय का कई लोगों ने समर्थन किया, जिससे यह बहस और तेज हो गई कि क्या प्रेस की स्वतंत्रता और लैंगिक समानता के मुद्दों पर पत्रकारों को एकजुट होकर खड़ा नहीं होना चाहिए था।