सुप्रीम कोर्ट (सोर्स: सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आदेश पर आपत्ति जताई, जिसमें एक महिला के लिए ‘अवैध पत्नी’ और ‘वफादार रखैल’ जैसे शब्दों का उपयोग किया गया था। कोर्ट ने कहा कि यह उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और ‘महिला विरोधी’ टिप्पणी है।
जस्टिस एएस ओक, जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह तथा जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह बॉम्बे हाईकोर्ट का साल 2003 में दिया गया एक फैसला पढ़ रहे थे। उस दौरान उनको ये शब्द मिले और न्यायाधीशों ने इसपर आपत्ति दर्ज कराई। बेंच ने कहा, ‘दुर्भाग्यवश, बंबई उच्च न्यायालय ने ‘अवैध पत्नी’ जैसे शब्द का इस्तेमाल करने की कोशिश की। हैरानी की बात ये है कि उच्च न्यायालय ने 24वें पैराग्राफ में ऐसी पत्नी को ‘वफादार रखैल’ कहा है।’
सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी पाया कि हाई कोर्ट ने अमान्य विवाह के पतियों के मामले में ऐसे किसी शब्द का उपयोग नहीं किया है। अदालत ने कहा कि एक महिला के बारे में इन शब्दों के जरिए बताना हमारे संविधान के आदर्शों तथा भावना के खिलाफ है। अमान्य शादी में पार्टी एक महिला के बारे में कोई भी ऐसे शब्दों का उपयोग नहीं कर सकता। दुर्भाग्य से हमें ऐसी आपत्तिजनक भाषा हाईकोर्ट के फुल बेंच के फैसले में देखने को मिली है।’
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जिस महिला का विवाह अमान्य घोषित कर दिया गया था, उसको ‘अवैध पत्नी’ कहना ‘बहुत अनुचित’ था तथा इससे उसकी गरिमा को ठेस पहुंची। शीर्ष अदालत हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 के इस्तेमाल पर परस्पर विरोधी विचारों से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी।
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बता दें कि अधिनियम की धारा 24 मुकदमे के लंबित रहने तक भरण-पोषण तथा कार्यवाही के खर्च से संबंधित है, वहीं धारा 25 में स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण का प्रावधान है।