सुप्रीम कोर्ट (सोर्स - सोशल मीडिया)
Delay in Implementing Women’s Reservation: देश के सर्वोच्च न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को महिला आरक्षण कानून को लागू करने में हो रही देरी के संबंध में एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। यह कानून महिलाओं को संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण देता है, लेकिन यह एक जटिल प्रक्रिया, सीमा-निर्धारण (delimitation) से जुड़ा हुआ है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि सरकार ने आरक्षण तो दे दिया पर इसे लागू करने के लिए ऐसी शर्त लगा दी है जिसकी कोई समय सीमा तय नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी किया है, जिससे अब सरकार को बताना होगा कि वह इस आरक्षण को कब तक लागू करने का इरादा रखती है।
हाल ही में संसद ने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ (महिला आरक्षण कानून) पारित किया था, जिसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई (33%) सीटें आरक्षित होंगी। हालांकि, इस कानून में एक शर्त जोड़ी गई है कि यह आरक्षण तभी लागू होगा जब देश में नई जनगणना होगी और उसके बाद परिसीमन (चुनावी क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से तय करने की प्रक्रिया) पूरी होगी।
एक याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की गई है कि इस आरक्षण को बिना परिसीमन की शर्त के तुरंत लागू किया जाए। याचिकाकर्ता का कहना है कि आरक्षण लागू करने के लिए परिसीमन का इंतजार करना समझ से परे है, क्योंकि परिसीमन की प्रक्रिया कब शुरू होगी और कब खत्म होगी, इसकी कोई समय-सीमा नहीं बताई गई है। अभी तक तो देश में जनगणना भी शुरू नहीं हुई है, जिसके बाद ही परिसीमन होता है।
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार ने एक अच्छा कानून तो बना दिया, लेकिन इसे लागू करने की तारीख जानबूझकर अनिश्चित कर दी है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सरकार ने 33% आरक्षण का फैसला लिया, तो यह मान लेना चाहिए कि उनके पास महिलाओं को आरक्षण देने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक डेटा मौजूद था।फिर, इसे लागू करने के लिए ‘नई जनगणना और परिसीमन’ जैसी अनिश्चित शर्त क्यों लगाई गई है? उनका तर्क है कि जब कानून बन गया है, तो उसे लागू करने में इतनी लंबी और तर्कहीन देरी नहीं होनी चाहिए।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने की। सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि किस कानून को कब लागू करना है, यह फैसला कार्यपालिका यानी सरकार का होता है। कोर्ट का काम यह पूछना है कि सरकार इसे कब लागू करने का प्रस्ताव रखती है। उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि सरकार इसे वैज्ञानिक डेटा के आधार पर लागू करना चाहती हो।
वकील ने कोर्ट की इस टिप्पणी पर जवाब दिया कि अगर वैज्ञानिक डेटा ही आधार होता, तो कानून बनाने से पहले ही डेटा मौजूद होना चाहिए था। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी कर दिया है।
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इस नोटिस का मतलब यह है कि अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट में यह बताना होगा कि वह महिला आरक्षण को लागू करने की समय सीमा को लेकर क्या विचार रखती है और इस देरी का क्या कारण है। इस मामले की अगली सुनवाई में सबकी निगाहें सरकार के जवाब पर टिकी होंगी। यह देखना होगा कि सरकार आरक्षण लागू करने के लिए क्या निश्चित समय सीमा बताती है।