कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता शशि थरूर (फोटो- सोशल मीडिया)
कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता शशि थरूर के हालिया बयान ने पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को लेकर फिर एक नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे किसी भी राजनीतिक या विवादास्पद मुद्दे पर सार्वजनिक मंच पर टिप्पणी नहीं करेंगे। थरूर का कहना है कि यदि कोई असहमति या सुझाव है, तो उसे पार्टी के अंदरूनी मंच पर और उचित समय आने पर ही साझा किया जाएगा। उनके इस रुख को कांग्रेस के भीतर संभावित असहमति को संयम से सुलझाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
शशि थरूर का यह बयान तब आया जब उनसे उनके एक एक्स पोस्ट के बारे में प्रतिक्रिया मांगी गई थी। पोस्ट में एक चिड़िया की तस्वीर के साथ लिखा था आपको उड़ने के लिए अनुमति की जरूरत नहीं है। पंख आपके हैं और आसमान किसी का नहीं है। इस पोस्ट ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी थी और इसे पार्टी के भीतर किसी मतभेद या दबे असंतोष का संकेत माना गया।
#WATCH | Ahmedabad, Gujarat: On his tweet, Congress MP Shashi Tharoor says “I am not going to get into political issues here. If there are issues to discuss, they would be discussed privately, and when the time comes, I shall do so.” pic.twitter.com/NCtCOuL1iN — ANI (@ANI) June 28, 2025
विदेश यात्रा के बाद से उठ रहे सवाल
हाल ही में शशि थरूर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर विदेश दौरे पर गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख थे। इस दौरान उन्होंने कुछ मौकों पर केंद्र सरकार की विदेश नीति की सराहना भी की, जिस पर कई कांग्रेस नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी। इसी घटनाक्रम के बाद यह माना जा रहा है कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को थरूर के बयान और व्यवहार रास नहीं आए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि थरूर की सार्वजनिक चुप्पी और कवितात्मक पोस्ट एक गहरे राजनीतिक संदेश के वाहक हैं, जिसे वे सीधे तौर पर कहने के बजाय संकेतों के माध्यम से प्रकट कर रहे हैं। वहीं, पार्टी के भीतर इस पर मतभेद हैं कि क्या थरूर को अपनी बात खुलकर रखनी चाहिए थी या नहीं।
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टकराव नहीं, समाधान के पक्षधर हैं थरूर
थरूर के बयान से यह भी संकेत मिलता है कि वे कांग्रेस में किसी टकराव की स्थिति से बचना चाहते हैं। वह अपनी असहमति या सुझावों को संगठनात्मक मर्यादा में रखते हुए हल करना चाहते हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि थरूर की यह नीति पार्टी नेतृत्व को किस दिशा में सोचने पर मजबूर करती है।