विदेश मंत्रालय प्रवक्ता रणधीर जायसवाल (फोटो- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की हालिया रक्षा मंत्रियों की बैठक में आतंकवाद को लेकर भारत ने कड़ा रुख अपनाया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक में सभी सदस्य देशों से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील की। हालांकि, इस महत्वपूर्ण बैठक के बाद भी कोई संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि एक सदस्य देश की असहमति के चलते साझा बयान को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
बैठक में भारत ने स्पष्ट कहा कि आतंकवाद मानवता के खिलाफ सबसे बड़ा खतरा है और इसका समर्थन या वित्तपोषण करने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए। रक्षा मंत्री ने सभी 11 सदस्य देशों से आग्रह किया कि वे आतंकवाद के सभी स्वरूपों के विरुद्ध कड़े और ठोस कदम उठाएं। इस दौरान भारत ने सीमा पार से होने वाले आतंकवाद को लेकर भी चिंता जताई और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी मुखर आलोचना जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई।
भारत की प्राथमिकता: आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता
रणधीर जायसवाल ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि भारत चाहता था कि बैठक के बाद जारी होने वाले संयुक्त बयान में आतंकवाद को लेकर एक स्पष्ट और ठोस संदेश जाए, लेकिन एक सदस्य देश इससे सहमत नहीं हुआ। इस वजह से यह दस्तावेज तैयार नहीं हो पाया। हालांकि, भारत ने अपने संबोधन में आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की और कहा कि साजिश रचने वालों से लेकर उनके मददगारों तक सभी को सख्त सजा मिलनी चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने बैठक में स्पष्ट किया कि वह किसी भी प्रकार के आतंक को स्वीकार नहीं करेगा। भारत की यह नीति रही है कि वह केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाता रहेगा। SCO जैसे मंचों से भारत यह संदेश देना चाहता है कि आतंकी नेटवर्क, चाहे वे कहीं भी हों, उनके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई जरूरी है।
SCO में सहमति की कमी बनी चिंता का विषय
रक्षा मंत्रियों की यह बैठक ऐसे समय पर हुई जब दुनियाभर में आतंकवाद एक बार फिर बढ़ते खतरे के रूप में उभर रहा है। भारत ने SCO को एक ऐसा मंच माना है जहां सदस्य देश आपसी मतभेद भुलाकर वैश्विक समस्याओं पर सामूहिक समाधान की ओर बढ़ सकते हैं। लेकिन एक देश की असहमति ने साझा रुख को बाधित कर दिया।
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यह घटनाक्रम दिखाता है कि आतंकवाद जैसे मुद्दे पर भी जब तक अंतरराष्ट्रीय सहमति नहीं बनती, तब तक ठोस रणनीति बनाना मुश्किल बना रहेगा। भारत ने इस चुनौती को गंभीरता से लेते हुए, भविष्य में भी इस दिशा में प्रयास जारी रखने की बात कही है।