जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की याचिका पर कल सुनवाई
Supreme Court J&K Statehood Hearing: सुप्रीम कोर्ट कल, 14 अगस्त, जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसे कारण सूची में भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है। यह आवेदन आर्टिकल 370 मामले में दिए गए 11 दिसंबर 2023 के फैसले के बाद दाखिल मिक्स्ड एप्लिकेशन के रूप में है, जिसमें अदालत ने अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखते हुए विधानसभा चुनाव सितंबर 2024 तक कराने और राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल करने की बात कही थी। याचिकाकर्ता जहूर अहमद भट और खुर्शीद अहमद मलिक का कहना है कि केंद्र द्वारा दिए गए आश्वासन के बावजूद स्टेटहुड बहाली पर ठोस कदम नहीं उठे, जिससे संघवाद की मूल संरचना प्रभावित हो रही है।
याचिका के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए हैं, इसलिए सुरक्षा या हिंसा जैसी कोई बाधा राज्य का दर्जा बहाल करने में रोड़ा नहीं हो सकती। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पहले कोर्ट को आश्वस्त किया था कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, जबकि लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बना रहेगा, जिसे अदालत के आदेश में एट द अर्लिएस्ट के रूप में दर्ज किया गया था। अब यह मामला फिर से कोर्ट के समक्ष इस मांग के साथ है कि समयबद्ध सीमा में बहाली के स्पष्ट निर्देश दिए जाएं, ताकि निर्वाचित सरकार और संघीय ढांचे की आत्मा अक्षुण्ण रह सके ।
आर्टिकल 370 पर 11 दिसंबर 2023 के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष दर्जा हटाने को वैध ठहराया था, साथ ही कहा था कि राज्य का दर्जा लौटाने की प्रक्रिया शीघ्र हो और विधानसभा चुनाव 30 सितंबर 2024 तक कराए जाएं। फैसले में यह भी स्पष्ट हुआ कि राज्य का दर्जा बहाल करने की संवैधानिक प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा बनाए रखना संघवाद के सिद्धांत से टकरा सकता है, जिसे याचिकाकर्ता अब प्रत्यक्ष उल्लंघन बता रहे हैं। सुनवाई इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अदालत ने पहले टाइमलाइन तय नहीं की थी, और अब याचिका समयबद्ध आदेश की मांग कर रही है ताकि नीति स्पष्ट हो सके।
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याचिकाकर्ता जहूर अहमद भट (शिक्षाविद) और खुर्शीद अहमद मलिक (सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता) ने कहा है कि गैर-बहाली से लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व घटता है और नागरिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जबकि हालिया चुनावों ने शांति और सहभागिता का संकेत दिया है। लिस्टिंग के मुताबिक यह मामला CJI बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष 14 अगस्त को, स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, सुना जाएगा, जिसे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन की मेंशनिंग के बाद बोर्ड पर बनाए रखा गया था। कानूनी पृष्ठभूमि में 2019 के पुनर्गठन कानून पर अदालत ने लद्दाख के अलग यूटी बनने तक सीमित वैधता का उल्लेख किया और राज्य का दर्जा बहाली पर केंद्र के आश्वासन को रिकॉर्ड किया था, जिसे अब अनुपालन के तौर पर परखा जा रहा है।