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जयंती विशेष: क्रांति के कर्णधार या ‘माफीवीर’? वीर सावरकर की वह कहानी…जो कर देगी दूध का दूध और पानी का पानी

तारीख थी 21 दिसंबर, 1909...नासिक के विजयानंद थिएटर में मराठी नाटक 'शारदा' का मंचन हो रहा था। यह नाटक नासिक के कलेक्टर जैक्सन की विदाई के उपलक्ष्य में खेला जा रहा था।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: May 28, 2025 | 07:56 AM

विनायक दामोदर सावरकर (सोर्स- सोशल मीडिया)

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साल था 1910…एक आदमी भूमध्य सागर में बेतहाशा तैर रहा था। ये आदमी टेढ़े-मेढ़े तरीके से तैर रहा था, कभी पानी के ऊपर, कभी पानी के नीचे। उस पर लगातार गोलियां बरसाई जा रही थीं। पानी में तैरता ये ‘क्रांतिकारी कैदी’ अपनी आज़ादी की चाह में इस जहाज़ के वॉशरूम के पोर्टहोल से समुद्र में कूद गया था। उसे पकड़ने के लिए दो सिपाही भी समुद्र में कूद पड़े। फिर शुरू हुआ पकड़ने और भागने का खेल।

ये दौड़ आज़ादी और गुलामी के बीच थी। भागने का मतलब आज़ादी, पकड़े जाने का मतलब काला पानी, कैद की अंधेरी कोठरी। ज़िंदगी भर के लिए। इस कैदी को मौत को मात देकर भी फ्रांस के मार्सिले शहर पहुंचना था। जहां एक उम्मीद उसका इंतज़ार कर रही थी। फिर इस युवक ने मार्सिले शहर को सुबह की धूप में खिलते देखा, और अपनी तैराकी और भी तेज़ कर दी। लेकिन…

कहां से शुरू हुई यह बड़ी कहानी

तारीख थी 21 दिसंबर, 1909…नासिक के विजयानंद थिएटर में मराठी नाटक ‘शारदा’ का मंचन हो रहा था। यह नाटक नासिक के कलेक्टर जैक्सन की विदाई के उपलक्ष्य में खेला जा रहा था। जैक्सन, जो नासिक के कुलीन लोगों के बीच ‘पंडित जैक्सन’ और वेदपाठी के नाम से जाने जाते थे, पदोन्नत हो चुके थे और अब बॉम्बे के कमिश्नर थे। यह नाटक उनके लिए एक तरह की विदाई पार्टी थी।

नासिक कलेक्टर जैक्सन की हत्या

जैक्सन तय समय पर नाटक देखने आता है। तभी मौका पाकर 18 साल का क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कन्हारे आगे आता है और अपनी पिस्तौल से कलेक्टर जैक्सन के सीने में चार गोलियां दाग देता है। जैक्सन वहीं गिर जाता है। जांच में पता चलता है कि कन्हारे ने जिस पिस्तौल से जैक्सन को गोली मारी थी, उसे लंदन से एक क्रांतिकारी ने नासिक भेजा था।

विनायक दामोदर सावरकर (सोर्स- सोशल मीडिया)

अब यह कहानी ऊपर की कहानी से जुड़ती है। दरअसल, 28 साल की उम्र में समुद्र में कूदने वाला और लंदन से नासिक हथियार भेजने वाला व्यक्ति एक ही थे। उनका नाम विनायक दामोदर सावरकर था। जिन्हें वीर सावरकर भी कहा जाता था। आज यानी 28 मई को सावरकर की 143वीं जयंती है। सावरकर हमारे अतीत के वो किरदार हैं जो हमारे वर्तमान को भी तीव्रता से प्रभावित करते हैं।

…और गिरफ्तार हो गए सावरकर

जैक्सन केस से मिले सुरागों ने ब्रिटिश पुलिस को सावरकर के दरवाजे तक पहुंचा दिया। सावरकर उस समय लंदन में कानून की पढ़ाई कर रहे थे। पुलिस ने उन्हें 13 मार्च 1910 को लंदन रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। सुनवाई हुई। मजिस्ट्रेट ने उन्हें ब्रिटेन से बॉम्बे भेजने का आदेश दिया।

1 जुलाई 1910 को सावरकर इस यात्रा पर निकलने के लिए ब्रिटिश जहाज एसएस मोरिया पर सवार हुए। छह दिन बाद 7 जुलाई की शाम को यह जहाज फ्रांस के तटीय शहर मार्सिले के पास समुद्र में लंगर डाले खड़ा था। सावरकर जहाज की सबसे निचली मंजिल पर एक कोठरी में दर्द से तड़पते रहे।

विनायक दामोदर सावरकर एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए (सोर्स- सोशल मीडिया)

8 जुलाई 1910 की सुबह उन्होंने पहरे पर खड़े गार्ड से शौचालय जाने की इजाजत मांगी। सावरकर शौचालय में बंद थे और दो गार्ड दरवाजे पर खड़े थे। इसी बीच सावरकर ने पोर्ट होल का कांच तोड़ दिया और मुक्त होने की प्रबल इच्छा के साथ समुद्र में छलांग लगा दी।

फ्रांसीसी नौसेना ब्रिगेडियर ने पकड़ा

फ्रांस में राजनीतिक शरण की उम्मीद सावरकर ने जैसे ही मार्सिले शहर को देखा, उन्होंने अपने पैर और हाथ जोर-जोर से हिलाना शुरू कर दिया। सावरकर जब हांफते हुए मार्सिले पहुंचे तो उनके शरीर पर बस कुछ ही कपड़े थे। यहां दो गार्ड लगातार उनका पीछा कर रहे थे। इस अफरातफरी में फ्रांसीसी नौसेना के ब्रिगेडियर जेंडरमेरी ने उन्हें पकड़ लिया।

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सावरकर, जो फ्रेंच नहीं जानते थे, ने टूटी-फूटी भाषा में अधिकारी से कहा कि उन्हें फ्रांस में राजनीतिक शरण चाहिए और उन्हें मजिस्ट्रेट के पास ले जाने को कहा। कानून की पढ़ाई कर रहे सावरकर जानते थे कि उन्होंने फ्रांस की धरती पर कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए अगर पुलिस उन्हें जल्दबाजी में गिरफ्तार भी कर ले तो उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनेगा। सावरकर जिरह कर रहे थे, तभी उनका पीछा कर रहे सैनिक वहां पहुंच गए और सावरकर को देखते ही चोर-चोर चिल्लाने लगे।

शुरू हुआ काला-पानी का दौर

अंत में ब्रिटिश सैनिकों ने सावरकर को डरा-धमकाकर फ्रांसीसी अधिकारी से छीन लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके साथ ही इस विद्रोही क्रांति ने नियति से छीनी गई आजादी के चंद मिनट खत्म हो गए। इसके बाद उनके जीवन में कारावास और काले पानी का एक लंबा दौर आया।

सावरकर का शुरुआती जीवन

सावरकर का जन्म 28 मई को बॉम्बे प्रेसिडेंसी के नासिक में हुआ था। वह, पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से बीए की पढ़ाई कर रहे थे तभी मित्र मेला नाम का एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। 1906 में यह संगठन ‘अभिनव भारत’ में तब्दील हो गया। सावरकर को उनके राजनीतिक विचारों के कारण फर्ग्यूसन कॉलेज से निकाल दिया गया। जिसके बाद बालगंगाधर तिलक के अनुमोदन पर उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा स्कॉलरशिप मिली और वे लंदन चले गए थे।

Savarkar controversy jayanti special revolution vs mercy petition

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Published On: May 28, 2025 | 07:56 AM

Topics:  

  • Birth Anniversary
  • Indian History
  • Veer Sawarkar

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