कांग्रेस की जिम्मेदारी प्रियंका को दो, पार्टी के अंदर ही उठने लगे राहुल गांधी पर सवाल (फोटो- सोशल मीडिया)
Congress Leadership Crisis: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के भीतर एक बार फिर नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं और यह सवाल किसी विरोधी ने नहीं, बल्कि उनकी ही पार्टी के ही एक कद्दावर नेता ने उठाए हैं। कांग्रेस के सीनियर नेता राशिद अल्वी ने पार्टी की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने सुझाव दिया है कि अब प्रियंका गांधी को पार्टी की बागडोर संभाल लेनी चाहिए। उनके इस बयान ने सियासी गलियारों में हलचल तेज कर दी है, क्योंकि उन्होंने सीधे तौर पर वर्तमान कार्यशैली पर उंगली उठाई है।
राशिद अल्वी ने संगठन की हालत को दयनीय बताते हुए कहा कि इसके लिए सीधे तौर पर कांग्रेस की लीडरशिप जिम्मेदार है। उनका मानना है कि चुनावी मेहनत और तैयारी के मामले में कांग्रेस कहीं ठहर नहीं पा रही है, जबकि भाजपा जमीन पर लगातार काम कर रही है। उन्होंने एक बड़ी बात यह कही कि आज के दौर में राहुल गांधी से मुलाकात करना कांग्रेस नेताओं के लिए भी आसान नहीं रह गया है। उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी से मिलना इससे कहीं ज्यादा आसान हुआ करता था, लेकिन आज वरिष्ठ नेताओं के लिए भी दरवाजे उतने खुले नहीं हैं।
राशिद अल्वी ने प्रियंका गांधी की वकालत करते हुए कहा कि उनमें दादी इंदिरा गांधी की छवि साफ दिखाई देती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता आज खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें जिम्मेदारी नहीं दी जा रही है। अल्वी के मुताबिक, जो नेता नाराज हैं या जिन्हें किनारे लगा दिया गया है, उन्हें वापस मुख्यधारा में लाना बेहद जरूरी है ताकि कांग्रेस को मजबूत किया जा सके। उनका कहना है कि पार्टी के भीतर वरिष्ठ लोगों की अनदेखी संगठन को अंदर से कमजोर कर रही है और यह सब लीडरशिप की कमी के कारण हो रहा है।
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सिर्फ केंद्रीय नेतृत्व ही नहीं, अल्वी ने कर्नाटक में चल रही सियासी रस्साकशी पर भी अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में सीएम की कुर्सी को लेकर जो खींचतान चल रही है, वह चिंताजनक है। अल्वी ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस के मुखिया राहुल गांधी नहीं, बल्कि मल्लिकार्जुन खरगे हैं, इसलिए उन्हें इस मसले को जल्द से जल्द सुलझाना चाहिए। उन्होंने राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और भाजपा का उदाहरण देते हुए कहा कि हर पार्टी में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन कर्नाटक में सरकार गठन के दौरान हुए ढाई-ढाई साल के करार की बात को लेकर डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच चल रहे विवाद को खत्म करना जरूरी है।