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एक कहानी आजादी की: जंगल में लगाया प्रेस..’काकोरी 2.0′ को दिया अंजाम, फिर भी गुमनाम रहा ये क्रांतिदूत

Ek Kahani Azadi Ki: सीरीज की तीसरी किश्त में हम एक ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी की कहानी आपके लिए लेकर आए हैं। जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना पूरा यौवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Aug 12, 2025 | 05:46 AM

बाबू नागेश्वर प्रसाद (सोर्स- सोशल मीडिया)

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Ek Kahani Azadi Ki: देश 15 अगस्त को आजादी की 78वीं सालगिरह मनाने जा रहा है। सभी नागरिक कृतज्ञता के साथ स्वातंत्र्य समर के योद्धों को नमन करेंगे। लेकिन की आजादी की लड़ाई में कैसे गुमनाम क्रांतिकारी रहे, जिन्हें इतिहास के पन्नों में समुचित स्थान नहीं मिल पाया। जिन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह असली हकदार थे।

‘एक कहानी आजादी की’ सीरीज के अंतर्गत हम स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे ही गुमनाम रणबांकुरों की एक दास्तान रोजाना आप तक पहुंचा रहे हैं। इस शृंखला की तीसरी किश्त में एक ऐसे ही महान स्वतंत्रता सेनानी की कहानी हम आपके लिए लेकर आए हैं। जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना पूरा यौवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया।

लोहदरगा के जंगल में स्थापित किया प्रेस

हम बात कर रहे हैं रांची के रणबांकुरे नागेश्वर प्रसाद की। जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की तमाम पाबंदियों के बावजूद, अपने दो-तीन साथियों के साथ लोहरदगा के बगडू पहाड़ी के घने जंगल में एक प्रेस की स्थापना की। उस प्रिंटिंग प्रेस का वज़न लगभग 500 से 600 किलोग्राम बताया जाता था। इस हस्तलिखित प्रिंटिंग प्रेस के ज़रिए वे लोगों को क्रांति के प्रति जागरूक करते थे।

काकोरी जैसी घटना को दिया अंजाम

उनके पोते रवि दत्त ने न्यूज वेबसाइट से बातचीत में बताया कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, उन्होंने अपने युवा साथियों के साथ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और ब्रिटिश सरकार का खजाना और हथियार लूटकर इतिहास में काकोरी कांड जैसी एक और घटना को अंजाम दिया। यह घटना रांची-डाल्टनगंज रेलमार्ग पर हुई थी।

बाबू नागेश्वर प्रसाद (सोर्स- सोशल मीडिया)

अंग्रेजों ने पीटा-नाखून मं चुभोई सूइयां

इस घटना के बाद नागेश्वर प्रसाद अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बन चुके थे, ब्रिटिश सरकार उन्हें किसी भी कीमत पर पकड़ना चाहती थी, एक मुखबिर की सूचना पर 23 जुलाई 1942 को उन्हें मंदार के पास घेरकर गिरफ्तार कर लिया गया, और घंटों बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर उनकी पिटाई की गई, उनके नाखूनों में सुइयां चुभोई गईं।

जेल की दीवार फंदकर हुए फरार

इसके बाद रांची जेल में सजा काटते समय उनकी पत्नी का निधन हो गया। अदालत से पैरोल न मिलने पर वे जेल से फरार हो गए। हालांकि श्मशान घाट पर पहले से मौजूद पुलिस ने उन्हें फिर से पकड़ लिया, लेकिन उन्हें अंतिम संस्कार की अनुमति दे दी गई और फिर वे जेल चले गए।

यह भी पढ़ें: एक कहानी आजादी की: जज पर हमले के लिए मिली सजा-ए-मौत, 18 की उम्र में फांसी पर झूल गया ‘क्रांतिदूत’

अंग्रेज अधिकारी पर चलाई गोली

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, नागेश्वर बाबू का एक अंग्रेज़ अधिकारी से सीधा टकराव हुआ। उसने उन पर गोली चला दी, वे किसी तरह बच गए, लेकिन जवाबी कार्रवाई में अंग्रेज़ अधिकारी ने भी गोली चला दी, जो उनके पैर में लगी और जीवन भर के लिए फंस गई। यही वजह है कि आज़ादी के बाद अपने आखिरी दिनों में भी वे लंगड़ाकर चलते थे। आज़ादी के बाद उनकी भागदौड़ बंद हो गई।

Ranchi freedom fighter nageshwar prasad journey and facts

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Published On: Aug 12, 2025 | 05:46 AM

Topics:  

  • Independence Day
  • Indian History
  • Jharkhand News

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