
प्रतिकात्मक तस्वीर (सौजन्य सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : हाल ही में महाराष्ट्र के वसई नगर में दिलदहला देने वाली घटना सामने आई थी जिसमें 32 वर्षीय रोहित ने अपनी पूर्व प्रेमिका आरती यादव की रिंच से हमला कर हत्या कर दी थी। इस जघन्य अपराध के दौरान वहां मौजूद कई लोगों का बर्ताव इससे कहीं ज्यादा चौंकाने वाला था, क्योंकि वे तमाशबीन बने रहे। घटना के सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता है कि मौके पर मौजूद केवल एक सख्श सिरफिरे हमलावर को रोकने की कोशिश कर रहा है जबकि बाकी लोग केवल मौत का तमाशा देखते रहे।
लगातार हमला किए जाने से 22 वर्षीय महिला की मौके पर ही मौत हो गई थी, लेकिन आरोपी तब भी नहीं माना और उसके मृत शरीर पर ही वार करता रहा। इस दौरान वह चिल्लाता रहा, “क्यों किया ऐसा मेरे साथ?” दिनदहाड़े हुई यह निर्मम हत्या इसी तरह की अन्य घटनाओं की सूची में शामिल हो गई है, जहां लोगों ने हमलावर को रोकने या पकड़ने के बजाय मूकदर्शक बने रहना ही बेहतर समझा।
इसी तरह का मामला दिल्ली के शाहबाद डेयरी में पिछले साल मई में सामने आया था जहां 16 वर्षीय एक लड़की की उसके कथित प्रेमी ने निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी। उसने लड़की पर चाकू से कई वार किए और फिर कंक्रीट के स्लैब से उस पर वार किया। हैरानी की बात तो यह थी कि इस वीभत्स कृत्य के दौरान अधिकतर लोग वहां से ऐसे गुजर रहे थे जैसे सब सामान्य है। कई तो चुपचाप खड़े होकर लाइव मौत का दृश्य देखते रहे, लेकिन किसी ने भी आरोपी को पकड़ने या उसे रोकने की जहमत नहीं उठाई।
हत्या की इन निर्मम घटनाओं में क्या समानता है? इन घटनाओं में निष्क्रिय दर्शकों की उपस्थिति सामान्य देखी गई है, जो ऐसे अपराधों को बस तमाशबीन बने हुए देखते रहते हैं। इससे भी बुरी बात तो यह है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो सोशल मीडिया पर कुछ लाइक और फॉलोअर्स पाने के लिए इन जघन्य अपराधों की वीडियो रिकॉर्ड करते हैं और ऐसे वीडियोज् को बेहिचक पोस्ट भी कर देते हैं।
ऐसे मामलों के लेकर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट श्वेता शर्मा का कहना है कि जब कई गवाह होते हैं, तो व्यक्ति को कदम उठाने की कम व्यक्तिगत जिम्मेदारी महसूस होती है। पीटीआई-भाषा से बात करते हुये उन्होंने कहा, ” हम इसे दर्शक प्रभाव (बाइस्टैंडर एफेक्ट) कहते हैं। इस दर्शक प्रभाव के पीछे कुछ मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारक होते हैं। इसमें पहला कारक जिम्मेदारी बोध कम हो जाने का है, जब बहुत से लोग मौजूद हों तो व्यक्ति यह मानता है कि शायद कोई और हस्तक्षेप करेगा। वे अपनी सुरक्षा को देखते हुए हस्तक्षेप करने से बचते हैं।
दिल्ली के सुंदर नगरी इलाके में अक्टूबर 2022 में भी इसी तरह की घटना हुई थी, जहां तीन लोगों ने 19 वर्षीय युवक की व्यस्त सड़क पर सरेआम हत्या कर दी थी। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट श्वेता शर्मा के अनुसार घटना स्थल पर मौजूद लोगों ने आरोपियों को रोकने की कोशिश इसलिए नहीं कि क्योंकि वह अपनी सुरक्षा को लेकर भी चिंतित थे। उन्हें लगता है कि अगर वे हस्तक्षेप करेंगे तो इससे उनकी जान खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि रोजमर्रा की जिंदगी में सोशल मीडिया के अधिक उपयोग ने भी ऐसी घटनाओं को सामान्य बना दिया है, क्योंकि सोशल मीडिया पर ऐसी वीडियो वायरल होती रहती हैं, जिसके कारण लोगों में इन घटनाओं पर उचित कदम उठाने के प्रति आत्मविश्वास की कमी हो गई है।
फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक दीप्ति पुराणिक ने इन घटनाओं को एक नया चलन बताया, जहां लोग पीड़ित के प्रति कम सहानुभूति रखते हैं। पुराणिक ने पीटीआई-भाषा से कहा, ”वर्तमान में हम डिजिटल दुनिया में हैं जहां तकनीक आसानी से उपलब्ध है और लोग अपने मोबाइल से चिपके रहते हैं। हर कोई अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर कुछ अनोखा अपलोड करना चाहता है और लोकप्रिय होने के लिए ज्यादा से ज्यादा लाइक प्राप्त करना चाहता है।’ उन्होंने कहा कि अधिकतम लाइक पाने की होड़ में लोग सही या गलत की समझ खो बैठे हैं और उनमें सहानुभूति की कमी हो गई है। (एजेंसी इनपुट के साथ)






