दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना
अहमदाबाद: अहमदाबाद की एक अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मारपीट के एक मामले में उनके खिलाफ सुनवायी को उनके पद पर बने रहने तक स्थगित रखने का अनुरोध किया गया था। अदालत ने कहा कि वह गुजरात की अदालतों में लंबित मामलों को बढ़ाना नहीं चाहती।
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पी एन गोस्वामी की अदालत ने 8 मई को सक्सेना को नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर पर कथित तौर पर हमला करने के मामले में राहत देने से इनकार कर दिया था। मेधा पाटकर पर कथित हमला उस समय हुआ था जब वह अप्रैल 2002 में गुजरात दंगों के खिलाफ गांधी आश्रम में शांति बैठक कर रही थीं। अदालत के आदेश की प्रति शुक्रवार को उपलब्ध करायी गयी।
अदालत ने कहा, ‘‘यह मामला 2005 से चल रहा है, यानी 18 साल, और इसमें और समय लगेगा। अगर आरोपी के खिलाफ सुनवायी निलंबित कर दी जाती है, तो स्वाभाविक रूप से यह मामला कई और वर्षों तक लंबित रहेगा। यह केवल गुजरात न्यायपालिका में पुराने लंबित मामलों को बढ़ाएगा।”अदालत ने कहा कि सक्सेना के खिलाफ सुनवायी पिछले साल से चल रही है और इस अवधि के दौरान, उन्होंने राज्य सरकार से इसे स्थगित करने का अनुरोध नहीं किया और न ही राज्य ने ऐसा कोई अनुरोध किया।
अदालत ने कहा कि आरोपी को पहले ही निचली अदालत में पेशी से छूट दी जा चुकी है। अदालत ने कहा, ‘‘यदि आरोपी संख्या 4 (सक्सेना) के खिलाफ कार्यवाही रोक दी जाती है, तो मामला और कई वर्षों तक लंबित रहेगा। गुजरात की अदालतों में लंबित पुराने मामलों की स्थिति को देखते हुए, इससे केवल लंबित मामलों की संख्या बढ़ेगी।”
सक्सेना ने संविधान के तहत दी गई प्रतिरक्षा का हवाला देते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल के पद पर रहने तक उनके खिलाफ सुनवायी पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। इस मामले में तीन अन्य आरोपियों – भारतीय जनता पार्टी के विधायक अमित ठाकेर और अमित शाह के साथ-साथ कांग्रेस नेता रोहित पटेल – के खिलाफ मुकदमा चल रहा है। अदालत ने कहा कि सक्सेना तब संवैधानिक पद पर नहीं थे।
अदालत ने कहा कि यदि तीन अन्य आरोपियों के खिलाफ सुनवायी जारी रहती है और उनके (सक्सेना के खिलाफ सुनवायी) पर रोक लगा दी जाती है, तो मामले में पहले जिन गवाहों से पहले जिरह हो चुकी है, उनके खिलाफ सुनवायी फिर से शुरू होने पर फिर से जिरह करनी होगी और इससे उन्हें कठिनाई होगी।
अदालत ने यह भी कहा कि सक्सेना और तीन अन्य के खिलाफ मुकदमा पिछले 18 साल से लंबित है। उसने कहा कि 71 और गवाहों से जिरह की जानी है, इस तरह सुनवायी को निलंबित करने पर काफी समय लगेगा।अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सक्सेना कानूनी स्थिति से वाकिफ हैं कि सुनवायी स्थगित नहीं की जा सकती। यदि यह संभव होता तो सक्सेना के उपराज्यपाल बनने के बाद इसे जारी नहीं रखना चाहिए था। अदालत ने कहा कि सक्सेना इस तथ्य से अवगत हैं कि घटना के समय वह उपराज्यपाल के पद पर नहीं थे।
मामले के विवरण के अनुसार, लोगों के एक समूह ने पाटकर पर कथित तौर पर हमला किया था जब वह 2002 के गुजरात दंगों के बाद आयोजित एक शांति बैठक में शामिल थीं। पाटकर की ओर से शहर के साबरमती पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 321, 341, 504 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था।