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7 Big Resignation in Modi Tenure: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह पहली बार ऐसा हुआ कि जब किसी उपराष्ट्रपति ने अपना कार्यकाल पूरा किए बिना अपने पद का त्याग कर दिया। लेकिन पीएम मोदी के 11 साल से लंबे कार्यकाल में यह 7वां ऐसा मौका था जब किसी बड़े ओहदे पर बैठे शख्स ने इस्तीफा दिया है।
बिना कार्यकाल पूरा किए इस्तीफा देने वालों के साथ एक बात कॉमन यह रही कि इन सभी की किसी न किसी मुद्दे पर केन्द्र की मोदी सरकार से सहमत नहीं थे। कई बार यह बात सार्वजनिक तौर पर सामने आईं, तो कई मौकों पर नहीं आ सकीं लेकिन सूत्रों ने यह जरूर स्पष्ट किया। खैर चलिए जानते है धनखड़ के अलावा 5 और कौन थे जिन्होंने कार्यकाल पूरा करने से पहले पद त्याग दिया।
यूपीए-2 सरकार के अंतिम वर्ष में मनमोहन सिंह द्वारा चुने गए अर्थशास्त्री और शिक्षाविद रघुराम राजन सितंबर 2016 में दूसरा कार्यकाल ठुकराते हुए शिकागो विश्वविद्यालय में अपने शिक्षण कार्य पर लौट आए। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री राजन ने 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की भविष्यवाणी की थी।
पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन (सोर्स- सोशल मीडिया)
राजन ने नोटबंदी और चुनावी बॉन्ड योजना पर सरकार के साथ मतभेदों की सूचना दी थी, जिसे पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दिया। तत्कालीन केंद्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत की वृद्धि पर राजन की एक टिप्पणी की सार्वजनिक रूप से आलोचना की थी और उसका खंडन किया था।
दिसंबर 2018 में आरबीआई बोर्ड की एक महत्वपूर्ण बैठक से कुछ दिन पहले उर्जित पटेल ने “व्यक्तिगत कारणों” का हवाला देते हुए अपने इस्तीफे की घोषणा की। लगभग सात साल पहले उनके इस्तीफे के बाद से ही इस बात पर व्यापक रूप से बहस चल रही है कि उन्होंने अपना पहला कार्यकाल पूरा किए बिना इस्तीफा क्यों दिया।
उर्जित पटेल ने रघुराम राजन के बाद भारत के केंद्रीय बैंक के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला था और नोटबंदी के तूफान का सामना किया था। माना जाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के साथ उनके कई टकराव रहे हैं। पटेल का इस्तीफा न केवल निवेशकों के लिए, बल्कि सरकार के लिए भी एक झटका था।
उर्जित के इस्तीफे को लेकर कई मीडिया रिपोर्ट्स में पटेल और सरकार के बीच मतभेद का एक कारण यह बताया गया है कि सरकार केंद्रीय बैंक पर राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद के लिए अपने 3.6 ट्रिलियन रुपये (48.73 अरब डॉलर) के भंडार में से कुछ देने का दबाव बना रही थी।
पूर्व RBI गवर्नर उर्जित पटेल (सोर्स- सोशल मीडिया)
कथित तौर पर केंद्र ने आरबीआई अधिनियम की धारा 7 के एक पहले कभी इस्तेमाल न किए गए नियम को लागू करने की धमकी दी थी। जिससे आरबीआई को अपने भंडार से 3 लाख करोड़ रुपये निकालने के लिए मजबूर किया जा सके, जो कि विमुद्रीकरण के नुकसान की भरपाई के लिए था।
उर्जित के इस्तीफे पर यह भी अटकलें लगाई गईं कि मोदी सरकार चुनावी बॉन्ड पर ज़ोर दे रही थी जिसका पटेल के पूर्ववर्ती राजन ने भी विरोध किया था। पटेल ने भी दिवंगत केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से आरबीआई के अलावा किसी अन्य बैंक द्वारा बॉन्ड जारी करने पर सवाल उठाया था।
विरल आचार्य अक्टूबर 2018 में तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने आरबीआई की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर एक तीखा भाषण दिया। इस भाषण में चेतावनी दी गई थी कि इसकी स्वायत्तता को कम करने का कोई भी कदम “संभावित रूप से विनाशकारी” हो सकता है।
आचार्य की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब नरेंद्र मोदी सरकार और भारत के केंद्रीय बैंक के बीच मतभेद बढ़ रहे थे, जिसके कारण अंततः तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को पद छोड़ना पड़ा। आचार्य ने आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक से कुछ हफ़्ते पहले ही अपना इस्तीफ़ा दे दिया था।
RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य (सोर्स- सोशल मीडिया)
आरबीआई के मौद्रिक नीति विभाग के प्रमुख आचार्य का तत्कालीन गवर्नर शक्तिकांत दास के साथ सरकारी वित्त और मोदी सरकार के राजकोषीय घाटे के अनुमानों के तरीके को लेकर टकराव हुआ था। “व्यक्तिगत आधार” पर अपने इस्तीफे से एक महीने पहले, कथित तौर पर मौद्रिक नीति समिति की एक बैठक के दौरान आचार्य का दास के साथ मतभेद हुआ था।
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने 2018 में अपने पोते के जन्म के अवसर पर एक पारिवारिक कार्यक्रम के लिए अमेरिका लौटने के अपने निर्णय की जानकारी अरुण जेटली के साथ एक वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दी थी, जो उस समय बीमार थे। अक्टूबर 2014 में तीन साल के कार्यकाल के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किए गए सुब्रमण्यन को जेटली ने ही यहीं रहने के लिए कहा था।
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन (सोर्स- सोशल मीडिया)
रघुराम राजन की तरह एयर इंडिया सहित निजीकरण के पक्षधर होने के कारण आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और सुब्रमण्यम स्वामी के कड़े हमले का शिकार हुए थे। स्वामी ने एक बार बौद्धिक संपदा अधिकारों पर वाशिंगटन के रुख का समर्थन करने के लिए सुब्रमण्यन पर सार्वजनिक रूप से हमला किया था। तब केंद्रीय वित्त मंत्री जेटली को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
2024 के लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से कुछ ही दिन पहले, चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। गोयल के जाने के बाद केंद्रीय चुनाव पैनल में केवल तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार बचे थे। पंजाब कैडर के 1985 बैच के IAS गोयल ने चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण के लिए बंगाल दौरे से एक दिन पहले इस्तीफा क्यों दिया यह अब भी सवाल है!
पूर्व ;चुनाव आयुक्त अशोक लवासा व अरुण गोयल (सोर्स- सोशल मीडिया)
अगर गोयल ने अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा किया होता तो वे ज्ञानेश कुमार की जगह मुख्य चुनाव आयुक्त होते। अरुण गोयल के इस्तीफे के पीछे तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के साथ मतभेदों की अटकलें लगाई जा रही थीं।
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चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी और शाह द्वारा प्रचार नियमों के कथित उल्लंघन पर कई असहमति पत्र दिए थे जिसके बाद उन्होंने पद छोड़ दिया था। बाद में उनके परिवार के पांच सदस्यों के खिलाफ आयकर जांच शुरू की गई। वह कथित तौर पर पेगासस स्पाइवेयर के निशाने पर आए लोगों में से एक थे।