PMO बना सेवा तीर्थ और राजभवन अब कहलाएंगे लोकभवन (कॉनसेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)
PMO Campus Name Now Become Seva Tirth: एक युग का अंत और एक नए युग की शुरुआत हो चुकी है। 1 दिसंबर 2025 का दिन भारत के इतिहास में एक बड़े बदलाव के रूप में दर्ज हो गया है। देश के नक्शे से अब राजशाही के बचे हुए आखिरी प्रतीक भी हमेशा के लिए मिटा दिए गए हैं। दिल्ली में सत्ता के सबसे बड़े केंद्र यानी प्रधानमंत्री कार्यालय के नए परिसर को अब सेवा तीर्थ के नाम से जाना जाएगा। वहीं राज्यों के गवर्नर हाउस यानी राजभवन का नाम बदलकर अब जनता का अपना लोकभवन कर दिया गया है।
न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर यह बदलाव तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। सरकार का यह कदम बताता है कि सत्ता अब प्रदर्शन की चीज नहीं, बल्कि जनसेवा का संकल्प है। पीएमओ की तरफ से भी स्पष्ट किया गया है कि सेवा तीर्थ नाम रखने के पीछे का मकसद इसे सेवा का पवित्र स्थान बनाना है। यह इमारत अब ताकत या रूतबे का नहीं, बल्कि जनता के प्रति समर्पण का प्रतीक बनकर उभरेगी।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर सरकार ने राजभवनों और पीएमओ का नाम बदलकर क्या संदेश दिया है। इसका जवाब बहुत सीधा और साफ है। केंद्र सरकार यह गहरा संदेश देना चाहती है कि सत्ता कोई सुख भोगने का साधन या विशेषाधिकार नहीं है। यह जनता के प्रति जिम्मेदारी का नाम है। नाम बदलने के पीछे सिर्फ दिखावा नहीं, बल्कि एक सोची-समझी विचारधारा है। संदेश यह है कि शासक का काम जनता की सेवा करना है, न कि सत्ता के ऐश्वर्य में डूबना। यह कदम दिखाता है कि हम अधिकार की मानसिकता से निकलकर कर्तव्य की ओर बढ़ रहे हैं।
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मोदी सरकार के पिछले 11 सालों के कार्यकाल में कई जगहों और सड़कों के नाम बदले गए हैं, जो इसी सोच को दर्शाते हैं। सबसे बड़ा उदाहरण राजपथ का है, जिसका नाम बदलकर कर्तव्य पथ किया गया। राजपथ शब्द में राजाओं और शक्ति का भाव था, जबकि कर्तव्य पथ जन-सेवा का मार्ग बताता है। इसी तरह 2016 में रेसकोर्स रोड को लोक कल्याण मार्ग नाम दिया गया था। रेसकोर्स नाम कुलीन वर्ग की मस्ती का प्रतीक था, जबकि लोक कल्याण मार्ग बताता है कि प्रधानमंत्री का निवास भी जनकल्याण का केंद्र है। अब सेवा तीर्थ और लोकभवन भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं।