राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत (फोटो- सोशल मीडिया)
RSS Chief Education View: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर भारतीय शिक्षा प्रणाली की विशेषताओं को रेखांकित किया है। केरल में आयोजित ‘ज्ञान सभा’ सम्मेलन में उन्होंने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो स्वार्थ नहीं, सेवा और त्याग सिखाए। भागवत ने इस मौके पर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि जो शिक्षा इंसान को सिर्फ नौकरी या पैसा कमाने का साधन बनाती है, वो अधूरी है। असली शिक्षा वो है जो आत्मनिर्भरता, संस्कार और समाज सेवा के लिए प्रेरित करे।
केरल में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में भागवत ने भारतीय परंपरा और जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा को समय की जरूरत बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यक्ति को ऐसा बनाना चाहिए जो कहीं भी अपने दम पर जीवन जी सके। भागवत के मुताबिक शिक्षा का मूल उद्देश्य सिर्फ करियर नहीं, समाज के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनाना है। उन्होंने युवाओं से भी आह्वान किया कि वे शिक्षा को सेवा से जोड़कर देखें।
मोहन भागवत ने कहा कि पारंपरिक भारतीय शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, ना कि केवल डिग्रीधारी। उन्होंने बताया कि भारत की पुरातन शिक्षा पद्धति गुरुकुल प्रणाली से लेकर आधुनिक युग तक सेवा, संयम और त्याग की भावना पर आधारित रही है। भागवत ने कहा कि यदि कोई प्रणाली केवल स्वार्थ को बढ़ावा देती है, तो वह शिक्षा कहलाने योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि शिक्षा में समाज के लिए जीने की प्रेरणा होना जरूरी है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आज की शिक्षा प्रणाली को करियर उन्मुख न बनाकर, जीवन मूल्यों से जोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि शिक्षा से प्राप्त ज्ञान का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाना नहीं, बल्कि ऐसा जीवन जीना है जिससे खुद भी आगे बढ़ें और समाज का भी कल्याण हो। भागवत ने युवाओं से अपील की कि वे अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग केवल अपने लिए नहीं, समाज के उत्थान के लिए भी करें।
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मोहन भागवत का यह दृष्टिकोण इस मुद्दे पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। ज्ञान सभा जैसे मंचों से जब शिक्षा में त्याग और सेवा की बात होती है, तब यह न केवल युवाओं को नई दिशा देता है बल्कि शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद भी जगाता है।