सुप्रीम कोर्ट (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : आज यानी बुधवार 23 अक्टुबर को वैवाहिक दुष्कर्म पर सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई होगी। इससे पहले इसे अपराध घोषित करने से जुड़ी याचिकाओं पर बीते गुरुवार 17 अक्टूबर को 3 घंटे सुनवाई चली थी। तब CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी।
जानकारी दें कि इस महत्वपुर्ण केस में दो याचिकाकर्ता हैं। इसमें से एक याचिकाकर्ता की एडवोकेट करुणा नंदी ने कहा था- पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने में पति को सिर्फ इसलिए छूट मिल रही, क्योंकि पीड़ित की पत्नी है। यह जनता बनाम पितृसत्ता की लड़ाई है, इसलिए हम इसकी संगीनता को देखते हुए अदालत में आए हैं।
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वहीं दूसरे एडवोकेट गोंजाल्विस ने कहा- पड़ोसी देश नेपाल में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध माना गया है। वहां यह किसी विवाह संस्था को अपमानित नहीं करता है। बल्कि विवाह में दुर्व्यवहार और बलात्कार विवाह संस्था को ही इसके उलट अपमानित करता है। यदि कोई महिला (पत्नी) संबंध बनाने को लेकर न कहती है, तो इसका मतलब न ही है। बीते 3 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ऐसा करने से वैवाहिक संबंधों पर एक बुरा असर पड़ेगा।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के उन दंडनीय प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करेगी जो बलात्कार के अपराध के लिए पति को अभियोजन से छूट प्रदान करता है, यदि वह अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है, को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है।
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इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने केंद्र की इस दलील पर याचिकाकर्ताओं की राय जाननी चाही थी कि इस तरह के कृत्यों को दंडनीय बनाने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा तथा विवाह की संस्था भी प्रभावित होगी।
इस पर एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने दलीलें शुरू कीं थीं और वैवाहिक दुष्कर्म पर IPC तथा BNS के प्रावधानों का जिक्र किया था। तब CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि, ‘‘यह एक संवैधानिक प्रश्न है। हमारे सामने दो निर्णय हैं और हमें फैसला लेना है। मुख्य मुद्दा संवैधानिक वैधता का है।” नंदी ने कहा कि अदालत को एक प्रावधान को रद्द कर देना चाहिए जो असंवैधानिक है।
जानकारी दें कि वैवाहिक दुष्कर्म को लेकर नए कानून बनाने की मांग काफी समय से हो रही थी। वहीं बीते दो सालों में दिल्ली हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इसकी मांग और भी तेज हो गई। हालांकि 2016 में मोदी सरकार ने मैरिटल रेप के विचार को ही खारिज कर दिया था। (एजेंसी इनपुट के साथ)