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उन्नाव रेपकांड: CBI ने किस आधार पर खटखटाया SC का दरवाजा? गिनवाई हाईकोर्ट के फैसले की 5 बड़ी खामियां

Unnao Rape Case Update: में दोषी कुलदीप सेंगर की सजा निलंबन के खिलाफ सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। एजेंसी ने हाईकोर्ट के फैसले को कानून के विरुद्ध और पीड़िता की सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। और...

  • By प्रतीक पांडेय
Updated On: Dec 27, 2025 | 08:33 AM

कुलदीप सेंगर, फोटो- सोशल मीडिया

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CBI SLP Supreme Court: दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने के आदेश को सीबीआई ने ‘त्रुटिपूर्ण’ और ‘विकृत’ करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में जांच एजेंसी ने तर्क दिया है कि एक प्रभावशाली अपराधी की रिहाई से न्याय की मूल भावना और पीड़िता की सुरक्षा दोनों दांव पर लग गई हैं।

सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी विशेष अनुमति याचिका (SLP) में सबसे प्रमुख खामी यह बताई है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने सजा निलंबित करते समय POCSO एक्ट के मूल उद्देश्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। एजेंसी के अनुसार, यह कानून केवल सजा देने के लिए नहीं, बल्कि उन बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए है जिनका शोषण सत्ता और प्रभाव के पद पर बैठे लोगों द्वारा किया जाता है। हाईकोर्ट यह समझने में विफल रहा कि सेंगर जैसे प्रभावशाली व्यक्ति के खिलाफ यह कानून और भी कड़ाई से लागू होना चाहिए।

लोक सेवक की परिभाषा और सामाजिक भरोसे का उल्लंघन

सीबीआई ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को दोषी ठहराते समय उसे ‘लोक सेवक’ (Public Servant) की श्रेणी में रखा था, जो भ्रष्टाचार निवारण कानून से प्रेरित था। एक सिटिंग विधायक होने के नाते सेंगर पर जनता का भरोसा था, और उसके द्वारा किया गया कदाचार केवल एक व्यक्तिगत अपराध नहीं बल्कि सामाजिक विश्वास का बड़ा उल्लंघन है। सीबीआई के अनुसार, हाईकोर्ट ने आरोपी के संवैधानिक पद और उसकी विशेष जिम्मेदारी को फैसले में पर्याप्त महत्व नहीं दिया।

पीड़िता की सुरक्षा और आरोपी का बाहुबल

याचिका में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कुलदीप सिंह सेंगर एक बेहद प्रभावशाली व्यक्ति है, जिसके पास पैसे और बाहुबल दोनों की ताकत है। यदि उसे रिहा किया जाता है, तो पीड़िता और उसके परिवार की जान को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है,। सीबीआई ने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट ने सुरक्षा जोखिम के इस पहलू को नजरअंदाज कर दिया, जबकि पीड़िता की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।

स्थापित कानूनी सिद्धांतों के विपरीत फैसला

सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को याद दिलाया कि न्यायशास्त्र का स्थापित सिद्धांत है कि दोष सिद्धि के बाद जेल ही सामान्य नियम है और जमानत या सजा का निलंबन केवल अपवाद। हाईकोर्ट ने इस सिद्धांत को दरकिनार करते हुए सजा को सस्पेंड कर दिया, जो कि कानून की नजर में त्रुटिपूर्ण है।

भ्रष्टाचार निवारण और POCSO की साझा विधायी मंशा की उपेक्षा

सीबीआई ने दलील दी कि POCSO और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम दोनों का उद्देश्य सत्ता और अधिकार रखने वाले लोगों को उनके कदाचार के लिए जवाबदेह बनाना है। ट्रायल कोर्ट ने उसे ‘लोक सेवक’ की परिभाषा के तहत दोषी ठहराया था, जिसे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में नजरअंदाज कर दिया।

अब हाईकोर्ट का भी पक्ष समझिए

हाई कोर्ट ने कहा कि साल 2019 में जब पीड़िता के परिवार ने यह कहते हुए सेंगर के खिलाफ आईपीसी की अधिक गंभीर धाराओं में मुकदमा चलाने की मांग की थी कि वह एक लोक सेवक होते हुए बलात्कार का आरोपी है, तब सीबीआई ने उस याचिका में पीड़िता का समर्थन नहीं किया। अदालत ने कुलदीप सिंह सेंगर को पॉक्सो अधिनियम की धारा 5 और 6 के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया।

हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेंगर पर केवल पॉक्सो की धारा 3 के तहत ही मुकदमा चलाया जा सकता है, जिसमें अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है, और यह अवधि सेंगर पहले ही जेल में पूरी कर चुके हैं। हाई कोर्ट के फैसले में ट्रायल कोर्ट की यह टिप्पणी भी शामिल है कि सीबीआई के जांच अधिकारी ने मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की, जिससे पीड़िता और उसके परिवार के मामले को नुकसान पहुंचा।

यह भी पढ़ें: कुलदीप सेंगर की जमानत पर घमासान! CBI पहुंची सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के फैसले को दी चुनौती

गौरतलब है कि सेंगर को दिसंबर 2019 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर 2025 को निलंबित करने का आदेश दिया था। फिलहाल वह पीड़िता के पिता की हत्या के एक अन्य मामले में 10 साल की सजा के कारण जेल में ही है।

Unnao rape case on what basis cbi approach supreme court pointed ou five major flaws

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Published On: Dec 27, 2025 | 08:33 AM

Topics:  

  • CBI
  • Kuldeep Sengar
  • Supreme Court

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