
सुप्रीम कोर्ट
Mahartashtra Local Body Elections: राजनीतिक दल मनमानी आरक्षण तो दे सकते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उसका टिकना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में हुआ है। महाराष्ट्र सरकार ने सभी आदेशों की अनदेखी करते हुए लोकल बॉडी चुनावों में 50 प्रतिशत से अधिक रिजर्वेशन दे दिया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि जहां-जहां भी 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हुआ है, वहां के चुनावी नतीजे हमारे फैसले पर निर्भर करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है। यदि अदालत तय करती है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, तो जीतने के बावजूद इन सभी चुनाव रद्द किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त रुख देखकर महाराष्ट्र सरकार ने राज्य चुनाव आयोग से सलाह लेने की बात कही और अदालत से समय मांगा। इसके बाद सुनवाई 28 नवंबर तक स्थगित कर दी गई। इससे पहले 19 नवंबर को अदालत ने राज्य सरकार से कहा था कि वह स्थानीय निकाय चुनावों के लिए नामांकन प्रक्रिया को स्थगित करने पर विचार करे, जब तक कि OBC को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले का न्यायालय में निपटारा नहीं हो जाता।
सीनियर एडवोकेट बलबीर सिंह ने अदालत को बताया कि 242 नगर परिषदों और 42 नगर पंचायतों यानी कुल 288 निकायों के चुनाव 2 दिसंबर के लिए पहले ही अधिसूचित किए जा चुके हैं। लेकिन इन 288 में से 57 निकायों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का उल्लंघन हुआ है। इसके बाद अदालत ने तुरंत आदेश दिया कि जिन 57 निकायों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिया गया है, वहां किसी भी उम्मीदवार की जीत अदालत के फैसले के अधीन रहेगी।
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शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हमें राज्य चुनाव आयोग से इस बारे में सलाह लेनी है, इसलिए कुछ समय दिया जाए। सीनियर एडवोकेट विक्रम सिंह ने तर्क दिया कि पहले के आदेशों से भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने स्थगन का विरोध न करते हुए बताया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने अवमानना याचिका भी दायर की है, जो मूल रूप से मई 2025 के आदेश को चुनौती देती है।
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इसलिए चुनाव को रद्द किया जाना चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा कि यदि चुनाव अवैध पाए जाते हैं तो अदालत के पास उन्हें रद्द करने की शक्ति है और उन्हें तुरंत रद्द कर दिया जाएगा। हालांकि, विक्रम सिंह ने तर्क दिया कि ऐसा रद्दीकरण सार्वजनिक धन की बर्बादी होगी और चुनावी प्रक्रिया को रोकने पर जोर दिया।






