मधुमिता मर्डर केस
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2003 में 26 वर्षीय कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में एक दोषी की समयपूर्व रिहाई का अनुरोध करने वाली याचिका पर उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है। इस बाबत जस्टीस अभय एस ओका और जस्टीस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने उत्तराखंड सरकार को नया नोटिस जारी करने पर सहमति जताई थी और मामले की अगली सुनवाई आज यानी 14 नवंबर को तय की है।
जानकारी दें कि जस्टीस अभय एस ओका और जस्टीस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने बीते 27 अक्टूबर को रोहित चतुर्वेदी की याचिका पर उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया था, जिसमें उनकी समयपूर्व रिहाई का आदेश देने के लिए एक सक्षम प्राधिकारी को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
इस बाबत उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने बिलकिस बानो मामले में आठ जनवरी और 13 मई, 2022 को पारित शीर्ष अदालत के पहले के फैसलों का हवाला दिया और कहा कि इस मामले में सक्षम प्राधिकारी उत्तराखंड सरकार होगी। प्रसाद ने बिलकिस बानो मामले में आठ जनवरी और 13 मई, 2022 को पारित शीर्ष अदालत के पहले के फैसलों का हवाला दिया और कहा कि इस मामले में सक्षम प्राधिकारी उत्तराखंड सरकार होगी।
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उन्होंने कहा था कि इस अदालत ने आठ जनवरी को कहा था कि जिस राज्य में आपराधिक मामले की सुनवाई हुई है, वह राज्य की नीति के अनुसार दोषियों की समयपूर्व रिहाई से निपटने के लिए सक्षम प्राधिकारी होगा। इस पर बेंच ने उत्तराखंड सरकार को नया नोटिस जारी करने पर सहमति जताई और मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को तय की।
जानकारी दें कि, इससे पहले, उत्तर प्रदेश सरकार ने उस आदेश को वापस लेने का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें उसे चतुर्वेदी की समयपूर्व रिहाई पर विचार करने के लिए कहा गया था। तब उप्र सरकार ने दलील दी है कि इस साल आठ जनवरी के दूसरे बिलकिस बानो फैसले के मद्देनजर, राज्य ने चतुर्वेदी के मामले में पारित 15 दिसंबर, 2023 के आदेश को वापस लेने या संशोधित करने का अनुरोध किया है।
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वहीं शीर्ष अदालत ने आठ जनवरी को वर्ष 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या से जुड़े मामले में गुजरात सरकार की ओर से 11 दोषियों को दी गई सजा में छूट को रद्द कर दिया था। तब शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि गुजरात सरकार सजा में छूट का आदेश देने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी नहीं है और स्पष्ट किया कि जिस राज्य में अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वह राज्य सरकार दोषी की सजा में छूट देने की याचिका पर फैसला करने में सक्षम है। बिलकिस बानो मामले के दोषियों पर महाराष्ट्र में मुकदमा चला।
इस प्रक्रिया में, पीठ ने शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसने गुजरात सरकार को 11 दोषियों को सजा में छूट देने के आवेदनों पर विचार करने का निर्देश दिया था और कहा था कि यह ‘अदालत के साथ धोखाधड़ी करके’ प्राप्त किया गया था। वर्तमान मामले में 15 दिसंबर, 2023 को जस्टीसअनिरुद्ध बोस (अब सेवानिवृत्त) और जस्टीस मसीह की पीठ ने 13 मई, 2022 के फैसले पर भरोसा करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से सजा में छूट देने का अनुरोध करने वाली चतुर्वेदी की याचिका पर विचार करने के लिए कहा, जिस पर उत्तराखंड की एक अदालत में हत्या का मुकदमा चलाया गया था।
वहीं उप्र सरकार ने उस आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया है जिसमें उसे दोषी की सजा में छूट देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर फैसला करने के लिए कहा गया है। उप्र सरकार ने कहा कि शीर्ष अदालत ने बिलकिस बानो मामले में बाद के फैसले में माना था कि जिस राज्य में दोषियों पर मुकदमा चलाया गया था, वही राज्य सरकार समय पूर्व रिहाई से जुड़ी ऐसी याचिका पर निर्णय लेने के लिए अपेक्षित प्राधिकारी है।
जानकारी दें कि, मधुमिता शुक्ला की नौ मई 2003 को लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, घटना के वक्त वह गर्भवती थीं। उप्र के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को सितंबर 2003 में उस कवयित्री की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था जिसके साथ वह कथित तौर पर रिश्ते में थे। इसके बाद मधुमिता शुक्ला की हत्या की साजिश के सिलसिले में अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया था।
वहीं उत्तराखंड की एक अधीनस्थ अदालत ने 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और सहयोगी संतोष कुमार राय को शुक्ला की हत्या के लिए दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तब इस मामले की जांच 17 जून 2003 को CBI को स्थानांतरित कर दी गई ती । सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी, 2007 को मुकदमे को उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड स्थानांतरित कर दिया था।
इस बाबत फिर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बीते 16 जुलाई 2012 को उनकी दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने 19 नवंबर, 2013 को इस आदेश को बरकरार रखा था। उत्तर प्रदेश के जेल विभाग ने 24 अगस्त, 2023 को अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की समयपूर्व रिहाई का आदेश जारी किया, जिसमें राज्य की 2018 की माफी नीति का हवाला दिया गया और इस तथ्य का भी जिक्र किया गया कि उन्होंने अपनी सजा के 16 साल पूरे कर लिए हैं।
वहीं आपराधिक साजिश और हत्या के लिए दोषी ठहराए गए चतुर्वेदी ने उत्तराखंड सरकार के समक्ष समय पूर्व रिहाई के लिए आवेदन किया था लेकिन उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी। इसके बाद पहले बिलकिस बानो मामले में सजा में छूट देने के फैसले (13 मई, 2022) का हवाला देते हुए, उसने शीर्ष अदालत से उत्तर प्रदेश सरकार को उसकी समय से पहले रिहाई के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था। अब आज इस मामले में फिर सुनवाई होगी। (एजेंसी इनपुट साथ)