क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा (सोर्स- सोशल मीडिया)
Ek Kahani Azadi Ki: अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 190 सालों तक राज किया। भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान क्रूरता के कई ऐसे अध्याय लिखे गए जिनके पन्ने पढ़कर किसी की भी रूह कांप सकती है। इसकी कल्पना करना किसी बुरे स्वप्न से कम नहीं है। लेकिन दूसरी तरफ मां भारती के कई ऐसे लाल भी थे जो उसे परतंत्रता की बेड़ियों से आजाद कराने अपने प्राणों की आहुति देने से भी परहेज नहीं किया।
मां भारती के वीर सपूतों ने गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए आखिरी सांस तक हार नहीं मानी। इनमें महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह सरीखे हज़ारों प्रसिद्ध क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों की चर्चा हमेशा होती है। लेकिन कई ऐसे गुमनाम नायक भी हैं जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाने के लिए खुद को क्रांति की बलिबेदी पर कुर्बान कर दिया।
‘एक कहानी आजादी की’ की पहली किश्त में आज हम आपको एक ऐसे ही गुमनाम क्रांतिकारी की दास्तान सुनाने वाले हैं, जिसने अंग्रेजों की धरती पर ही एक अंग्रेज़ अफसर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था। इस हत्या को अंजाम देने के लिए स्वतंत्रता संग्राम के उस सिपाही को मौत की सजा सुनाई गई थी।
अंग्रेजी धरती पर अंग्रेज अफसर को गोली मारने की बात आते ही आपके भी जेहन में सरदार ऊधम सिंह का नाम कौंधा होगा। लेकिन हम यहां बात कर रहे हैं मदनलाल ढींगरा की। जिन्होंने 25 साल की उम्र में लंदन यानी ब्रिटिश धरती पर, भारतीय राज्य सचिव के सहयोगी सर विलियम हट कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
मदनलाल ढींगरा (सोर्स- सोशल मीडिया)
मदनलाल ढींगरा को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया और मात्र 16 दिनों के भीतर 17 अगस्त 1909 को उन्हें फांसी दे दी गई। उस समय ढींगरा का पार्थिव शरीर ब्रिटेन में दफनाया गया था, लेकिन आज़ादी के बाद 1976 में उनका पार्थिव शरीर भारत लाया गया। उस समय देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी। मदनलाल ढींगरा का पार्थिव शरीर महाराष्ट्र के अकोला में रखा गया था।
ओल्ड बेली प्रोसीडिंग्स ऑनलाइन के मुताबिक मदनलाल ढींगरा ने अदालत में कहा था, “मैं अपने बचाव में कुछ नहीं कहना चाहता, सिवाय इसके कि मैं अपने कृत्य को न्यायसंगत साबित कर सकूं। जहां तक मेरा सवाल है, किसी भी अंग्रेज अदालत को मुझे गिरफ्तार करने, कैद करने या मौत की सज़ा देने का अधिकार नहीं है। इसीलिए मेरे पास अपना बचाव करने के लिए कोई वकील नहीं था।”
उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि अगर किसी अंग्रेज के लिए जर्मनों के खिलाफ लड़ना देशभक्ति है। तो मेरा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना कहीं ज़्यादा न्यायोचित और देशभक्तिपूर्ण है। मैं पिछले पचास सालों में 8 करोड़ भारतीयों की हत्या के लिए अंग्रेजों को ज़िम्मेदार मानता हूं, और वे हर साल भारत से इस देश में 10 करोड़ पाउंड लाने के लिए भी ज़िम्मेदार हैं।”
18 फरवरी 1883 को अमृतसर में जन्मे मदनलाल ढींगरा एक भारतीय राष्ट्रवादी के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने यह हत्या छात्र जीवन में ही कर दी थी। उनके पिता डॉ. दित्ता मल ढींगरा एक सिविल सर्जन थे। इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे लाहौर चले गए।
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उन दिनों वे राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित थे, उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1904 में अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में दाखिला लिया। यहीं वीडी सावरकर से मिलने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया और क्रांति की मशाल पकड़ ली थी।