लालकृष्ण आडवाणी (फोटो सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्कः भारत का एक ऐसा राजनेता जिसका आज ही के दिन पाकिस्तान में जन्म हुआ था। उसके अंदर 14 वर्ष की उम्र से ही देश भक्ति की भावना जगी, जिसका कारण RSS था। उस सख्स ने अपने जीवनकाल का जब 20वां सावन देखा तो धरती खून से लाल हो गई थी। क्योंकि इसी वर्ष अंग्रेजों ने भारत को दो हिस्सों में बांटकर आजादी थी। विभाजन की इस त्रासदी में लाखों की जानें गई थीं। इस दौरान करोड़ों लोग अपना घर बार छोड़कर भारत से पाकिस्तान गए तो कुछ लोग पाकिस्तान से भारत आए, जो लोग पाकिस्तान से भारत आए उसमें 20 वर्षीय युवक का भी परिवार था। जिसे आज हम लाल कृष्ण आडवाणी के नाम से जानते हैं।
लाल कृष्ण आडवाणी को राजनीतिक जीवन जितना संघर्षमय रहा उतना ही सफल भी रहा। उन्हें भाजपा के कर्णधार के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने कंधों पर भाजपा को शून्य से सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। आज भाजपा दुनिया के सबसे बड़ी पार्टी है। जब पार्टी के संघर्षों के दिन खत्म हुए अपनों नहीं आडवाणी को किनारे लगा दिया। पार्टी के पुराने लोग उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते थे। 2014 के बाद उनकी उम्र का हवाला देकर इलेक्टोरल पॉलिटिक्स से बाहर कर दिया गया।
लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता रहे हैं, जिनका जीवन संघर्ष, समर्पण और सफलता से भरा हुआ है। उनके जन्मदिन के अवसर पर, उनके व्यक्तित्व, योगदान और राजनैतिक यात्रा पर एक नजर डालते हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उनके पिता एक साधारण व्यापारी थे। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत में आ गया। आडवाणी ने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। अपनी शिक्षा के दौरान ही उनका झुकाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तरफ हुआ, जहां से उनके राजनैतिक जीवन की नींव रखी गई।
राजनीति में प्रवेश
आडवाणी ने अपने राजनैतिक सफर की शुरुआत भारतीय जनसंघ से की, जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में स्थापित किया था। उन्होंने जनसंघ के भीतर विभिन्न पदों पर काम किया और जनसंघ के नीतियों और विचारधाराओं को मजबूती से आगे बढ़ाया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना के समय वे पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक बने।
आडवाणी की छवि एक दृढ़ विचारधारा वाले राजनेता की रही, जिन्होंने पार्टी के सिद्धांतों और विचारधाराओं से कभी समझौता नहीं किया। 1980 के दशक में जब राम जन्मभूमि आंदोलन ने जोर पकड़ा, तो आडवाणी ने उस आंदोलन का नेतृत्व किया। उनकी “रथ यात्रा” ने उन्हें राष्ट्रव्यापी पहचान दिलाई और भाजपा के लिए राजनीतिक समर्थन जुटाने में अहम भूमिका निभाई।
सफलता और उपलब्धियां
लाल कृष्ण आडवाणी ने 2002 से 2004 तक भारत के उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में न केवल भारत की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत किया, बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी देश को मजबूती प्रदान की। उनके नेतृत्व में भाजपा ने केंद्र सरकार में अपना स्थायी स्थान बनाया और 1999 से 2004 तक एनडीए सरकार की स्थापना की।
वे भारत में गठबंधन सरकारों के विचार को प्रोत्साहित करने वाले पहले नेताओं में से एक थे। आडवाणी का दृष्टिकोण लोकतांत्रिक था, जिसमें उन्होंने सहिष्णुता और समावेशिता के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया। उनकी मेहनत, निष्ठा और दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि भाजपा ने अपनी विचारधारा और राजनीतिक दृष्टिकोण के साथ-साथ बड़ी सफलता हासिल की।
उनके योगदान और विरासत
लाल कृष्ण आडवाणी ने भारतीय राजनीति में नैतिकता और सेवा का महत्व बनाए रखा। वे राजनीति को सिर्फ सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं मानते थे, बल्कि इसे राष्ट्र की सेवा का जरिया मानते थे। आडवाणी की सोच ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी और भाजपा को एक सशक्त राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आडवाणी के योगदान को आने वाले वर्षों में याद किया जाएगा। उनके विचार, सिद्धांत और नेतृत्व आज भी भाजपा और भारतीय राजनीति में जीवित हैं। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है कि कैसे एक साधारण पृष्ठभूमि से निकल कर एक व्यक्ति दृढ़ निश्चय, मेहनत और समर्पण से बड़े लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।