बिहार में भारत बंद का असर (फोटो- सोशल मीडिया)
Bharat Bandh Impact: देश में 9 जुलाई यानि आज भारत बंद का मिला-जुला असर देखा गया। कई राज्यों में तो इससे जनजीवन प्रभावित हुआ तो कई जगहों पर सामान्य दिनचर्या जारी रही। बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में राजनीतिक दलों और श्रमिक संगठनों की सक्रियता से बंद का असर साफ-साफ दिखाई दिया, वहीं दिल्ली और अन्य बड़े महानगरों में इसका खास असर नहीं पड़ा। इस भारत बंद का आह्वान दस वामपंथी केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने किया था जो वेतन वृद्धि और श्रमिक हितों को लेकर नाराज हैं।
श्रमिक संगठनों का आरोप है कि केंद्र सरकार बीते दस वर्षों से उनकी मांगों को अनदेखा कर रही है। उनका कहना है कि निजी और सहकारी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये होना चाहिए ताकि बढ़ती महंगाई के बीच कर्मचारियों का जीवन सम्मानजनक रह सके। वहीं भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) और व्यापारिक संगठन कैट ने बंद से दूरी बना ली। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों में व्यापारिक गतिविधियां सामान्य रहीं और स्कूल, कॉलेज, बैंक सब खुले रहे।
बिहार में चक्का जाम, दिल्ली में सामान्य दिनचर्या
बिहार में राजद और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बसें और ट्रेनें रोककर बंद को असरदार बनाया। पटना, गया और आरा समेत कई जिलों में ट्रैफिक प्रभावित रहा। कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध किया। वहीं दिल्ली में बंद का कोई असर नहीं दिखा। सभी स्कूल-कॉलेज, ऑफिस और बाजार खुले रहे। दिल्ली सरकार की ओर से न्यूनतम वेतन 18,456 से 24,356 रुपये तय किए गए हैं, फिर भी श्रमिकों का कहना है कि ये राशि मौजूदा महंगाई में अपर्याप्त है।
वेतन वृद्धि और सरकार से संवाद की मांग
वामपंथी केंद्रीय कर्मचारी संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार ने पिछले एक दशक में उनसे कोई सीधा संवाद नहीं किया। उनका दावा है कि बंद में 25 करोड़ कर्मचारी, श्रमिक और सहकारी संस्थाओं के लोग शामिल हैं। संगठनों ने आरोप लगाया कि सरकार उद्योगपतियों के पक्ष में फैसले ले रही है, जिससे श्रमिकों की स्थिति और बदतर होती चली जा रही है। उनका कहना है कि न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये तय हो ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें और भोजन के अलावा भी जीवन के अन्य जरूरी खर्च पूरे कर सकें।
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व्यापारिक संगठन कैट और भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने साफ किया कि व्यापारी इस बंद में शामिल नहीं हैं। उनका कहना है कि सरकार ने श्रमिक हितों को लेकर सकारात्मक कार्य किए हैं और फिर ऐसे बंद अर्थव्यवस्था को बाधित करते हैं। देश के प्रमुख वाणिज्यिक बाजारों में कारोबार सामान्य रहा। इस भारत बंद ने एक बार फिर श्रमिकों की आवाज को सामने लाने का प्रयास किया, लेकिन इसकी सफलता राज्यवार भागीदारी और राजनीतिक समर्थन पर ही निर्भर है।