शहीद लांस नायक दिनेश शर्मा, सिपाही मुरली नाइक, सार्जेंट सुरेंद्र कुमार मोगा (फोटो सोर्स - सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: भारत-पाक सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच जब गोलियां बरसीं, तब कई जांबाज सैनिकों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। कुछ के घरों में रिटायरमेंट की तैयारी चल रही थी तो किसी के घर शादी की खुशियां आने वाली थीं, लेकिन इन सबके बीच वतन की पुकार ने उन्हें पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं दिया। कोई सीमांत चौकी पर लीड कर रहा था, तो कोई पहली पंक्ति में मोर्चा संभाले हुए था। देश की रक्षा करते हुए इन सैनिकों ने अपने प्राण गंवाए, मगर उनके साहस और समर्पण की कहानियां आज भी सीना गर्व से चौड़ा कर देती हैं।
इन सभी शहीदों के परिवारों की पृष्ठभूमि बेहद साधारण रही है, लेकिन उनके सपने बहुत बड़े थे। किसी के माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे तो किसी ने पूरे गांव के सपने आंखों में लिए फौज की वर्दी पहनी थी। इनकी शहादत सिर्फ एक सैनिक की नहीं, बल्कि हर उस भारतीय के गर्व की पहचान है जो अपने देश की सीमाओं को महफूज देखना चाहता है। इनके बलिदान ने यह साबित कर दिया कि सच्चा योद्धा मिटता जरूर है, लेकिन कभी हारता नहीं।
सूबेदार मेजर पवन कुमार – दो महीने में रिटायर होना था
हिमाचल के कांगड़ा के पवन कुमार जम्मू-कश्मीर के राजौरी में तैनात थे। दो महीने बाद रिटायर होने वाले थे, लेकिन पाकिस्तान की फायरिंग में घायल होकर शहीद हो गए। अस्पताल में आखिरी सांस लेने से पहले उन्होंने देश के प्रति अपना आखिरी फर्ज निभा दिया।
सिपाही मुरली नाइक मजदूर माता-पिता की इकलौती संतान
आंध्र प्रदेश के मुरली बेहद गरीब परिवार से थे। माता-पिता मुंबई में मजदूरी कर पेट पालते थे। सेना में भर्ती होकर मुरली ने परिवार की हालत सुधारी थी, शादी की तैयारी हो रही थी, मगर उरी सेक्टर में पाकिस्तानी फायरिंग में वो शहीद हो गए।
लांस नायक दिनेश शर्मा गर्भवती-पत्नी की आंखें आज भी इंतजार में
हरियाणा के नगला मोहम्मदपुर गांव के दिनेश शर्मा पुंछ में शहीद हो गए। फरवरी में छुट्टी से लौटे थे। मां-बाप ने उन्हें भारत माता के लिए समर्पित किया, वहीं पत्नी जो सात माह की गर्भवती हैं, आज भी उस कॉल का इंतजार कर रही हैं जो कभी नहीं आएगी।
सार्जेंट सुरेंद्र कुमार मोगा -छुट्टी से लौटते ही शहीद
बेंगलुरु में तैनात सुरेंद्र कुमार को उधमपुर बुलाया गया था। चार दिन बाद ही पाकिस्तान की शेलिंग में वो शहीद हो गए। पत्नी और दो बच्चों को गांव भेजकर खुद मोर्चे पर लौटे थे। देश की रक्षा करते हुए उन्होंने जान कुर्बान कर दी।
सब-इंस्पेक्टर मोहम्मद इम्तियाज – सबसे आगे मोर्चा संभालते हुए शहीद
जम्मू के RS पुरा सेक्टर में तैनात इम्तियाज पाकिस्तानी गोलाबारी के दौरान सबसे आगे डटे थे। पैर में गोली लगने के बाद इलाज के दौरान उनका निधन हो गया, लेकिन उन्होंने अपने साथी जवानों की सुरक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी।
राइफलमैन सुनील कुमार – सरहद पर जान दी, गांव में अंतिम विदाई मिली
जम्मू के त्रेवा गांव के सुनील कुमार RS पुरा सेक्टर में शहीद हुए। उनका अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ हुआ। गांव और देश को उन पर गर्व है, जिन्होंने अपने खून से सरहद को सींचा।
राज कुमार थापा – सरकारी अफसर जो फर्ज निभाते हुए शहीद हुए
राजौरी के सरकारी निवास पर रह रहे अफसर थापा पाकिस्तान की शेलिंग में शहीद हो गए। वे जम्मू-कश्मीर में विकास कार्यों से जुड़े थे, लेकिन शांति के प्रयासों के बीच युद्ध ने उन्हें भी अपने लपेटे में ले लिया।