प्रतीकात्मक फोटो, सोर्स- सोशल मीडिया
IMA ने डॉक्टर की गिरफ्तारी को गलत ठहराते हुए कहा कि असली जिम्मेदारी प्रशासनिक और नियामक निकायों की है। आईएमए ने अपने बयान में कहा, “मध्य प्रदेश की कफ सिरप त्रासदी और उसे लिखने वाले डॉक्टर की गिरफ्तारी अधिकारियों और पुलिस की कानूनी अज्ञानता का उत्कृष्ट उदाहरण है।”
आईएमए ने कहा कि वास्तविक दोषियों पर तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए और प्रभावित परिवारों व बदनामी झेल रहे डॉक्टर को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए।” मामले में शनिवार को परासिया पुलिस स्टेशन में सीएचसी में तैनात एक शिशु रोग विशेषज्ञ और मेसर्स श्रीसन फार्मास्युटिकल्स (कांचीपुरम, तमिलनाडु) के निदेशकों के खिलाफ बीएनएस की धारा 105 और 276 तथा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 27(ए) के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
आईएमए ने कहा कि कुछ कंपनियां खांसी की सिरप बनाने में महंगे और सुरक्षित तत्वों की जगह सस्ते व जहरीले औद्योगिक रसायन जैसे डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और इथाइलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल करती हैं। ये पदार्थ दिखने में सामान्य लगते हैं, लेकिन बच्चों में किडनी फेल्योर या मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
संगठन के अनुसार डॉक्टर को यह नहीं पता होता कि कोई सिरप जहरीला है या नहीं, जब तक कि उसके दुष्प्रभाव सामने न आएं। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार लोग बिना डॉक्टर की सलाह के सिरप खरीद लेते हैं, जिससे बच्चों में खतरा बढ़ जाता है।
आईएमए ने 2003 की माशेलकर समिति रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि देश की औषधि नियामक प्रणाली में राज्य और केंद्र स्तर पर कई खामियां हैं- जैसे अपर्याप्त निरीक्षण व्यवस्था, कमजोर प्रवर्तन, प्रशिक्षण की कमी और परीक्षण सुविधाओं का अभाव। संगठन ने कहा कि सीडीएससीओ और एमपीएफडीए सिरप में DEG की सांद्रता की निगरानी करने में विफल रहे, जो इस त्रासदी की बड़ी वजह है।
आईएमए ने कहा, “सरकार का रवैया जनता में भरोसा बढ़ाने के बजाय डर पैदा कर रहा है। “एक डॉक्टर को गिरफ्तार करना, जिसे सक्षम प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित दवा लिखने का अधिकार है, गलत संदेश देता है। देशभर के डॉक्टर इससे भयभीत हैं।” आईएमए ने स्पष्ट किया कि यह मामला ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 17B के तहत नकली दवा का है। ऐसी दवाओं की मंजूरी, गुणवत्ता और निगरानी पूरी तरह नियामक निकायों की जिम्मेदारी है।
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संगठन ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को जनता का भरोसा बहाल करने की दिशा में काम करना चाहिए, न कि चिकित्सा पेशे को डराने की। आईएमए ने कहा, “इन बच्चों की मौत की जिम्मेदारी निर्माताओं और अधिकारियों पर है। चिकित्सा पेशे को धमकाना अनुचित है और इसका विरोध किया जाएगा।”