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हमेशा के लिए बंद हो गई ‘दीवार की खिड़की’, ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन

Vinod Kumar Shukla Passes Away: छत्तीसगढ़ की माटी के पुत्र और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया है।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Dec 23, 2025 | 06:22 PM

विनोद कुमार शुक्ल (डिजाइन फोटो)

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Vinod Kumar Shukla Death: साहित्य जगत के लिए मंगलवार का दिन एक बुरी खबर लेकर आया। छत्तीसगढ़ की माटी के पुत्र और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें दो दिसंबर को एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां वे वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। मंगलवार शाम पांच बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे शुक्ल जी ने शिक्षा को अपना पेशा बनाया, लेकिन उनका मन हमेशा साहित्य सृजन में ही रमा रहा। उनकी विशिष्ट शैली और अद्भुत लेखन के लिए उन्हें साल 2024 में 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था। वे यह सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले और हिंदी के 12वें लेखक थे। उनके जाने से हिंदी साहित्य के एक सुनहरे और प्रयोगधर्मी अध्याय का अंत हो गया है।

नौकर की कमीज का सिनेमाई सफर

विनोद कुमार शुक्ल की लेखनी का जादू ऐसा था कि 1979 में आए उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर फिल्मकार मणिकौल ने इसी नाम से फिल्म बनाई थी। उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुई थी। उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

30 लाख की रॉयल्टी ने उड़ा दिए होश

यह किताब उस वक्त और ज्यादा सुर्खियों में आई, जब इसके लिए प्रकाशक की तरफ से उन्हें 6 महीने में 30 लाख रुपये की रॉयल्टी मिली। इस बात ने साहित्य जगत में सबको हैरान कर दिया था कि हिंदी की किसी गंभीर साहित्यिक कृति को इतनी बड़ी रॉयल्टी मिल सकती है। यही उनकी लोकप्रियता का एक बड़ा प्रमाण था।

जीवन को शब्दों में पिरोने वाले जादूगर

शुक्ल जी का लेखन अपनी सरलता और गहरी संवेदना के लिए जाना जाता है। उन्होंने केवल कविताएं ही नहीं लिखीं, बल्कि कथा साहित्य को भी एक नई दिशा दी। उनके उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन की छोटी-छोटी बारीकियों और संघर्षों को बहुत ही कुशलता से उकेरा गया है।

यह भी पढ़ें: बहू को दिए तोहफे टैक्स-फ्री, लेकिन सास-ससुर को देना होगा टैक्स; क्यों इस नियम को बदलने की उठी मांग?

उन्होंने लोक आख्यान और आधुनिक मनुष्य की उलझनों को मिलाकर कहानियों का एक नया ढांचा तैयार किया। ‘खिलेगा तो देखेंगे’ जैसे उपन्यासों के जरिए उन्होंने हिंदी में मौलिक भारतीय उपन्यास की नींव रखी। वे एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने अपनी कलम से आम आदमी के सपनों को अमर कर दिया।

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Published On: Dec 23, 2025 | 06:15 PM

Topics:  

  • Chhattisgarh News
  • Hindi Literature
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