सुनीता चौहान, प्रदीप और कपिल (सोर्स- सोशल मीडिया)
Hatti Tribe Marriage Story: हिमाचल प्रदेश में हुई एक शादी की तस्वीरें इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इसमें एक दुल्हन दो दूल्हों के साथ खड़ी दिखाई दे रही है। उसकी शादी दोनों दूल्हों से हुई है और दोनों दूल्हे सगे भाई हैं। हट्टी समुदाय की यह हज़ारों साल पुरानी परंपरा है, जिसमें लड़की सगे भाइयों से शादी करती आ रही है।
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले का गिरिपार इलाका इन दिनों एक ऐसी ही शादी के कारण फिर से सुर्खियों में है। इसमें सगे भाइयों की शादी एक ही लड़की से हुई है और ख़ास बात यह है कि दोनों ही भाई पढ़े-लिखे हैं। इनमें से एक जल शक्ति विभाग यानी सरकारी सेवा में तैनात है और दूसरा विदेश में नौकरी करता है।
हिमाचल प्रदेश के शिलाई गाँव में हट्टी समुदाय की सुनीता चौहान का विवाह 12 जुलाई (2025) को पारंपरिक रीति-रिवाज से हुआ। तीन दिवसीय विवाह समारोह में लोकगीतों और नृत्य का अनूठा संगम देखने को मिला, वहीं सैकड़ों मेहमान इस विवाह के साक्षी बने। दूल्हे प्रदीप और कपिल नेगी ने प्राचीन बहुपति प्रथा के तहत सुनीता से विवाह किया।
हालांकि, इस समुदाय के कई लोग अब इस पुरानी परंपरा को नहीं मानते, लेकिन इन तीनों ने पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित कर लोगों को चौंका दिया है। आइए जानते हैं हट्टी जनजाति की यह अजीबोगरीब परंपरा क्या है और इसका इतिहास क्या है? यह कितने राज्यों में होती है?
भारत में बहुपति प्रथा महाभारत काल से मिलती है, जिसमें माता कुंती के कहने पर अनजाने में ही पांचों पांडव द्रौपदी से विवाह कर लेते हैं। ऐसी परंपरा आज भी हिमाचल प्रदेश में विद्यमान है। इसके अलावा, देश के उत्तराखंड में भी ऐसी परंपरा देखने को मिलती है। सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी उत्तराखंड के जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश के किन्नौ और सिरमौर ज़िले के गिरिपार में प्रचलित है।
केंद्रीय हट्टी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री के हवाले से मीडिया में बताया गया है कि यह परंपरा हज़ारों साल पहले परिवार की कृषि भूमि को बंटवारे से बचाने के लिए शुरू हुई थी। उन्होंने कहा कि जाजड़ा परंपरा संयुक्त परिवार में भाईचारे और आपसी समझ को बढ़ावा देती है। जब एक ही माँ या अलग-अलग माताओं की कोख से जन्मे दो या दो से अधिक भाई एक ही दुल्हन से विवाह करते हैं, तो उनकी आपसी समझ और भी गहरी हो जाती है।
हिमाचल प्रदेश में हट्टी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है और इसकी बहुपति प्रथा, जो जोड़ी-दारा के नाम से जानी जाती है, को सामाजिक और कानूनी मान्यता भी प्राप्त है। स्थानीय स्तर पर इस अनोखे आदिवासी विवाह को जाजड़ा के नाम से जाना जाता है। इसमें दुल्हन को बारात के साथ दूल्हे के घर ले जाया जाता है, जहाँ सभी रस्में निभाई जाती हैं, जिन्हें सिंज कहा जाता है।
कुंदन सिंह शास्त्री ने कहा कि इस परंपरा का तीसरा कारण सुरक्षा है। इसके माध्यम से इधर-उधर फैली कृषि भूमि का प्रबंधन आसान हो जाता है। आर्थिक ज़रूरतें एक साथ पूरी हो जाती हैं और पहाड़ी इलाकों में खेती के लिए एक ऐसे परिवार की ज़रूरत होती है जो लंबे समय तक उसकी देखभाल कर सके। उन्होंने कहा कि अगर आपका परिवार बड़ा है तो आप आदिवासी समाज में ज़्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं।
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यह भी कहा जाता है कि जब दो या तीन भाइयों को एक ही स्त्री से संतान होती है, तो वे खुद को अपना ही मानते हैं। इससे जनसंख्या भी नियंत्रण में रहेगी। इसके अलावा, इस समुदाय के लोग खुद को पांडवों से भी जोड़ते हैं। इसीलिए वे सदियों से चली आ रही इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं। हालाँकि, शिक्षा के प्रसार के साथ, इस प्रथा को मानने वालों में तेज़ी से कमी आई है।