SC के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन और राम मंदिर (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आर.एफ. नरीमन ने अयोध्या राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे सेकुलरिज्म के सिद्धांतों के खिलाफ बताया और न्याय प्रक्रिया का मजाक करार दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद स्वीकार किया था कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई राम मंदिर नहीं था। इस बयान के बाद विवाद और बढ़ने की संभावना है। इस विषय को समझने के लिए हमने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की उस रिपोर्ट को खंगालने की कोशिश की, जिसके आधार पर सर्वोच्च अदालत ने राम मंदिर के पक्ष में निर्णय दिया था।
2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने विवादित स्थल पर खुदाई की थी। इस प्रक्रिया की शुरुआत ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक से हुई, जिसका उद्देश्य जमीन के नीचे छिपी हुई किसी ऐतिहासिक संरचना या मानव निर्मित वस्तु का पता लगाना था। तकनीकी संकेतों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट से खुदाई की अनुमति ली गई। यह खुदाई 12 मार्च 2003 को शुरू हुई और लगभग पांच महीने तक चली। इस दौरान एएसआई की 14 सदस्यीय टीम को बढ़ाकर 50 सदस्यीय कर दिया गया था। खुदाई स्थल पर सुरक्षा बल और अदालती पक्षकारों के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।
खुदाई में अलग-अलग कालखंडों की संरचनाएं सामने आईं। ऊपरी परतें 18वीं-19वीं सदी की थीं, जो मुगल काल से जुड़ी थीं। इसके नीचे सुंग, कुषाण, गुप्त और मौर्य काल की संरचनाएं मिलीं। सबसे गहरे स्तर पर 1680 ईसा पूर्व के अवशेष पाए गए। खुदाई में काले चमकदार बर्तनों, टेराकोटा मूर्तियों और वास्तुशिल्पीय तत्वों के साक्ष्य भी मिले।
पुरातत्वविद् बी.आर. मणि के अनुसार, खुदाई ने इस स्थल के इतिहास को 17वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक पाया गया। मणि का कहना है कि यह खोज पहले के विचारों का खंडन करती है, जिसमें माना गया था कि अयोध्या का यह क्षेत्र 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व से अस्तित्व में है।
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खुदाई में गुप्त काल के बाद बड़ी संरचनाओं के प्रमाण मिले, जो किसी बड़े धार्मिक स्थल की ओर इशारा करते हैं। मूर्तियों, टेराकोटा, और अन्य वास्तुशिल्पीय तत्वों के आधार पर यह माना गया कि यह स्थल गुप्त काल के बाद एक धार्मिक केंद्र बन गया। इससे पहले यह एक रिहायशी क्षेत्र था, जिसका प्रमाण जल निकासी, चूल्हे और अन्य घरेलू संरचनाओं से मिलता है। लेकिन बाद में इसके धार्मिक स्थल में परिवर्तित होने की भी साक्ष्य मिले हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई की रिपोर्ट को अपने फैसले में महत्वपूर्ण आधार माना। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी, बल्कि वहां पहले से एक मंदिर जैसी संरचना मौजूद थी। बी.आर. मणि ने सरकार से आग्रह किया है कि एएसआई की इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए ताकि आम जनता को इस स्थल के ऐतिहासिक तथ्यों की सटीक जानकारी मिल सके।