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हवा साफ करने दिल्ली आएंगे ‘नकली बादल’, राजधानी में पहली बार होगी क्लाउड-सीडिंग से बारिश

Delhi-NCR में प्रदूषण से लड़ने के लिए अब 'क्लाउड सीडिंग' की जाएगी। सेसना विमान कानपुर से मेरठ रवाना हो चुका है। अनुकूल बादलों को देखते हुए अगले 72 घंटों में कृत्रिम बारिश की तैयारी है।

  • By प्रतीक पांडेय
Updated On: Oct 23, 2025 | 08:58 PM

प्रतीकात्मक फोटो, सोर्स- सोशल मीडिया

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Cloud Seeding in Delhi-NCR: दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बेहद खराब श्रेणी में पहुंच गया है, जबकि आनंद विहार गंभीर श्रेणी में है। ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण से निपटने के लिए अब कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) का सहारा लिया जाएगा। सेसना का विशेष एयरक्राफ्ट कानपुर से मेरठ के लिए रवाना हो चुका है। बादलों की अनुकूल स्थिति को देखते हुए, अगले तीन दिनों (72 घंटों) में यह प्रयोग कभी भी किया जा सकता है।

दिल्ली में सर्दियों की शुरुआत होते ही वायु गुणवत्ता का स्तर तेजी से बढ़ा है। गुरुवार सुबह शहर में वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ श्रेणी में रही, जबकि आनंद विहार ‘गंभीर श्रेणी’ में दर्ज किया गया। हवा की धीमी गति ने भी स्थिति को और अधिक बदतर बना दिया है।

कानपुर से मेरठ के लिए रवाना हुआ एयरक्राफ्ट

इस स्थिति से निपटने के लिए, राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में अब कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) का सहारा लिया जाएगा। क्लाउड सीडिंग को अंजाम देने वाला विशेष एयरक्राफ्ट कानपुर से मेरठ के लिए रवाना हो चुका है। सूत्रों के अनुसार, बादलों की अनुकूल स्थिति को देखते हुए, यह कृत्रिम बारिश अगले तीन दिनों (72 घंटों) में कभी भी की जा सकती है।

भारत में नकली बादलों से असली बारिश कराना कोई नई बात नहीं है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के वैज्ञानिक पुष्टि करते हैं कि आर्टिफिशियल तरीके से बारिश कराने का प्रयोग 1951 से अब तक कई बार किया जा चुका है। दुनिया में पहली बार यह प्रयोग अमेरिका ने 1946 में किया था।

पहले कहां-कहां हुआ है ऐसा

भारत में सबसे पहले 1951 में टाटा फर्म द्वारा पश्चिमी घाट पर जमीन आधारित सिल्वर आयोडाइड जनरेटर का उपयोग करके कृत्रिम बारिश की कोशिश की गई थी। इसके अलावा, सूखे से निपटने के लिए कर्नाटक (2003, 2004, 2019), महाराष्ट्र (2004), आंध्र प्रदेश (2008), और तमिलनाडु (तीन बार) में भी कृत्रिम बारिश कराई जा चुकी है।

कैसे होती है कृत्रिम वर्षा

कृत्रिम वर्षा कराने के लिए क्लाउड सीडिंग मौसम में बदलाव का एक वैज्ञानिक तरीका है। इसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और उनसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड छोड़े जाते हैं। इन रसायनों से बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं, जो फिर बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं। हालांकि, यह तभी संभव होता है जब वायुमंडल में कम से कम 40 फीसदी पानी के साथ पर्याप्त बादल और नमी मौजूद हो।

पाइरोटेक्निक से होगी दिल्ली में बारिश

राजधानी में कृत्रिम बारिश के लिए पाइरोटेक्निक नामक विशेष तकनीक का उपयोग किया जाएगा। एयरक्राफ्ट के दोनों पंखों के नीचे 8 से 10 पॉकेट (पाइरोटेक्निक फ्लेयर्स) रखी गई हैं। विमान में मौजूद बटन दबाकर इन पॉकेट में रखे केमिकल्स को बादलों के नीचे ब्लास्ट किया जाएगा। ये फ्लेयर्स नीचे से ऊपर की ओर बादलों के साथ प्रतिक्रिया करती हैं, संघनन (Condensation) को बढ़ाती हैं और बारिश कराती हैं।

यह भी पढ़ें: पीएम मोदी का महागठबंधन पर बड़ा हमला, ‘बिहार की जनता लठबंधन को माफ नहीं करेगी’

100 किलोमीटर तक दिखेगा असर

इस क्लाउड सीडिंग का असर लगभग 100 किलोमीटर की रेंज में महसूस होने की संभावना है, जिससे दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से राहत मिल सकती है। बता दें कि पूर्व केजरीवाल सरकार ने भी आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी, लेकिन किन्हीं कारणों से इसे लागू नहीं किया जा सका था।

 

Delhi to experience artificial rain to combat pollution artificial rain delhi pollution

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Published On: Oct 23, 2025 | 08:58 PM

Topics:  

  • Delhi
  • Delhi NCR Weather
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