हिंदी साहित्यकार स्वर्गीय धर्मवीर भारती (सोर्स- सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: आज यानी बुधवार 4 सितंबर को हिंदी उपन्यास के सशक्त हस्ताक्षर धर्मवीर भारती की पुण्यतिथि है। साल 1997 में आज ही के दिन वह हिंदी साहित्य जगत को सूना कर के परलोक सिधार गए थे। धर्मवीर भारती के उपन्यास जितने रोमांचक हैं उतनी ही रोमांचक उनके जीवन की कहानी भी है। तो चलिए हम आपको भी रूबरू करवाते हैं उनके जीवन के कुछ रोमांचक किस्सों से।
प्रयागराज यानी तत्कालीन इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में चिरंजी लाल के घर जन्मे धर्मवीर भारती का बचपन आर्थिक तंगी में कट गया। एक दिन तो नौबत यह आन पड़ी कि जब वह देवदास फिल्म देखने के लिए सिनेमा गए तो टिकट नहीं खरीद सके। बॉक्स ऑफिस के बाहर वह जेब से पैसे निकालकर गिनते रहे लेकिन वह टिकट के लिए नाकाफी थे।
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इस घटना के बाद धर्मवीर घर लौट आए। घर पहुंचे तो धर्मवीर के हंसमुख चेहरे को उदास और गुमसुम देखकर मां ने सारी कहानी जानी। उसके बाद उन्होंने धर्मवीर को कुछ और पैसे दे दिए। वह पैसे लेकर धर्मवीर घर से फिल्म देखने के लिए निकले लेकिन फिल्म नहीं देखी, बल्कि देवदास पर लिखी एक किताब खरीद लाए।
देवदास फिल्म देखने के बजाय किताब पढ़कर धर्मवीर भारती की दुनिया बदल गई। उन्हें इस बात का भान हो गया है कि सिनेमा एक दर्शक का कुछ घंटे मनोरंजन कर सकता है। लेकिन उपन्यास उससे कम पैसे में उससे कहीं ज्यादा आनंद दे सकता है। यही वजह है कि उन्होंने भी उपन्यास लिखने की ठान ली।
धर्मवीर भारती को उनके उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ ने उपन्यास की दुनिया का ‘देवता’ बना दिया। उसके बाद ‘सूरज का सातंवा घोड़ा’ ऐसे दौड़ा कि उनकी सारी आर्थिक तंगी दूर हो गई। उन्होंने ‘अंधा युग’ नाटक जरिए व्यवस्था पर प्रहार किया तो ‘मुर्दों का गांव’ कहानी के माध्यम से जनता में चेतना जागृत करने का प्रयास भी किया। निबंध में उन्होंने ‘ठेले पर हिमालय’ खड़ा किया तो साहित्यकार देखते रह गए।
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