शशि थरूर। इमेज-सोशल मीडिया
Shashi Tharoor and Congress: कांग्रेस सांसद शशि थरूर अपने बयानों के कारण राजनीतिक तूफान से घिर गए हैं। उन्होंने एक कार्यक्रम में राहुल गांधी और उनके भारत विरोधी प्रचार की आलोचना करते हुए कहा था कि विदेश नीति किसी पार्टी की नहीं, देश की होती है। उनके इस बयान का भाजपा और जदयू ने समर्थन किया और कहा कि वैश्विक मंच पर राष्ट्रीय एकता को उभारने की जरूरत है। विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी निशाना बना रहा है। वहीं, कांग्रेस ने थरूर के बयान की आलोचना की और सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें नेहरू के अपमान पर भी बोलना चाहिए।
बता दें, थरूर ने मीडिया कार्यक्रम में कहा था कि भारत की विदेश नीति भाजपा या कांग्रेस से जुड़ी नहीं होती, बल्कि देश के तौर पर भारत का प्रतिनिधित्व करती है। एक प्रधानमंत्री की हार पर कोई राजनीति व्यक्ति खुशी मनाता है तो वह एक तरह से भारत की हार का जश्न मना रहा होता है। थरूर ने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कथन का उदाहरण दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत मर गया तो फिर जीवित कौन बचेगा।
कांग्रेस नेताओं ने थरूर पर हमला करते हुए कहा है कि भाजपा जब पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आलोचना करती है, तब वह जवाब क्यों नहीं देते। नेताओं ने थरूर को पीएम मोदी का गुलाम न बनने की अपील की। कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद वी हनुमंत राव ने कहा, थरूर को पूर्व प्रधानमंत्रियों के लिए भी बोलना चाहिए। देश में ऐसे पीएम रहे हैं, जो देश सेवा के लिए जेल गए और फिर भी अपमानित किए जा रहे हैं।
कांग्रेस की ओडिशा इकाई के अध्यक्ष भक्त चरण दास ने कहा कि थरूर चाटुकार की तरह व्यवहार कर रहे हैं। मैं उनकी बौद्धिकता का बेहद सम्मान करता हूं। उनका बयान उनकी राय हो सकती है, लेकिन उन्हें देश की मौजूदा व्यवस्था पर भी अपनी राय रखनी चाहिए।
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महाराष्ट्र भाजपा विधायक राम कदम ने कहा कि थरूर का बयान सच्चाई से भरा और स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री किसी पार्टी का नेता नहीं होता, बल्कि देश का नेता होता है। दुर्भाग्य से राहुल गांधी जैसे नेता जैसे टिप्पणी करते, आलोचना या मखौल उड़ाने वाले बयान देते हैं, वह दुखद है। ऐसी टिप्पणियां देश के गौरव और भावना को ठेस पहुंचाती हैं। राहुल को कम-से-कम अपनी पार्टी के नेता की बात सुननी चाहिए। जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे पर पार्टियों ने एकजुटता कायम रखी है, लेकिन दुर्भाग्य से अब देश के आंतरिक मुद्दे विदेश में चर्चा के विषय बनाए जा रहे।