CJI Gavai Calls Anti Bulldozer Justice Verdict His Most Significant Decision: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) द्वारा आयोजित एक विदाई समारोह में, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई ने न्यायिक परंपरा से हटकर अपने सबसे महत्वपूर्ण फैसलों पर खुलकर टिप्पणी की। रविवार को रिटायर हो रहे CJI गवई ने अपने कार्यकाल के दो सबसे महत्वपूर्ण फैसलों को सार्वजनिक रूप से उजागर किया, क्योंकि उनके पास अब कोई लंबित न्यायिक कार्य नहीं बचा है। उन्होंने ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ दिए गए ऐतिहासिक फैसले को सबसे ऊपर रखा, जबकि नौकरी आरक्षण में उप-वर्गीकरण (sub-categorisation) की अनुमति देने वाले फैसले को दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बताया। उनके इस बयान ने भारत में कानून के शासन और सामाजिक न्याय की दिशा में न्यायपालिका की भूमिका पर प्रकाश डाला है।
CJI गवई ने ‘बुलडोजर जस्टिस’ (Bulldozer Justice) के खिलाफ अपने फैसले को सबसे महत्वपूर्ण करार दिया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यह फैसला कानून के शासन (Rule of Law) के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है। उन्होंने सवाल किया कि यदि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप है या वह दोषी ठहराया गया है, तो उसके घर को कैसे गिराया जा सकता है?
उन्होंने जोर देकर कहा कि घर गिराने की कार्रवाई से उस व्यक्ति के परिवार और माता-पिता का क्या दोष है? आश्रय का अधिकार (Right to Shelter) एक मौलिक अधिकार है और इसे मनमाने ढंग से छीना नहीं जा सकता। CJI गवई ने यहां तक बताया कि उन्होंने विदेशों में अपने भाषणों में भी इस फैसले का उल्लेख किया था। उन्होंने दुनिया को बताया कि कैसे भारतीय न्यायपालिका कानून के शासन की रक्षा करती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट किया था कि कोई भी कार्यकारी संस्था (Executive) एक साथ जज, जूरी और जल्लाद (Judge, Jury and Executioner) की भूमिका नहीं निभा सकती।
CJI गवई ने दूसरा सबसे महत्वपूर्ण फैसला अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) को नौकरी आरक्षण का लाभ लेने के लिए उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाला बताया। उन्होंने इस निर्णय के पीछे की सामाजिक विसंगति को उजागर किया।
उन्होंने कहा कि यह कल्पना करना मुश्किल है कि एक मुख्य सचिव (Chief Secretary) के बच्चों की तुलना एक कृषि मजदूर (Agricultural Labourer) के बच्चों से कैसे की जा सकती है, जिनके पास शिक्षा या किसी भी संसाधन तक कोई पहुंच नहीं है। इसके बारे में, उन्होंने बाबासाहेब अम्बेडकर को उद्धृत किया। उन्होंने कहा कि समानता (Equality) का मतलब सबके साथ एक जैसा व्यवहार करना नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से वास्तव में और अधिक असमानता पैदा होगी। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि आरक्षण का लाभ उन लोगों तक पहुंचे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, न कि केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों तक।
अपने कार्यकाल के दौरान, CJI गवई ने सुप्रीम कोर्ट के ‘CJI-केंद्रित’ (CJI-centric) होने की पारंपरिक सोच से खुद को दूर रखा। उन्होंने बताया कि संस्था से संबंधित कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले उन्होंने हमेशा अपने सभी साथी जजों से सलाह ली। उन्होंने अपने छोटे से कार्यकाल में उच्च न्यायालयों में 107 न्यायाधीशों की नियुक्ति का उल्लेख भी किया।
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उन्होंने कॉलेजियम (Collegium) की बैठकों में सहयोगपूर्ण माहौल बनाने के लिए अपने सहयोगियों को धन्यवाद दिया। हालाकि, उन्होंने एक छोटी सी असहमति का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने एक लंबा पत्र लिखकर जस्टिस विपुल एम पंचोली को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के कॉलेजियम के फैसले का विरोध किया था। यह बताता है कि संस्थागत निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और बहस का माहौल मौजूद था।