अटल बिहारी वाजपेयी के साथ वसुंधरा राजे (सोर्स- सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: भारतीय राजनीति की किताब में तमाम राजनेताओं की कई रोचक कहानियां लिखी गई हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही सियासी शख्सियत की कहानी बताने जा रहे हैं। जिसे राजनीतिक गलियारों में ‘महारानी’ के नाम से जाना गया। जिनका जन्म महाराष्ट्र की राजधानी मायानगरी मुंबई में हुआ। उन्होंने मध्य प्रदेश से अपना सियासी सफर शुरू किया और राजस्थान पर राज किया।
जी हां! आज यानी शनिवार 8 मार्च को भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का जन्मदिन है। वह आज 72 साल की हो गई हैं। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस भी है। आइए इस मौके पर जानते हैं राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री राजे की रोचक कहानी।
बात 2002 की है। भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में जनसंघ और भाजपा के सबसे बड़े नेता हुआ करते थे। 2002 में जब वे उपराष्ट्रपति बने तो राजस्थान में भाजपा के कई नेताओं के लिए यह आगे बढ़ने का मौका बन गया। दिल्ली में वाजपेयी ने भैरों सिंह शेखावत से राजस्थान के पार्टी अध्यक्ष के बारे में पूछा। कुछ नामों पर चर्चा हुई। फिर जब शेखावत ने एक नाम लिया तो अटल जी चौंक गए। यह नाम था अटल सरकार में मंत्री रहीं और धौलपुर की महारानी वसुंधरा राजे का।
राजस्थान में वसुंधरा राजे का राजनीतिक सफर भले ही लंबा रहा हो, लेकिन उनका राजनीतिक सफर उनके मायके से शुरू हुआ। वसुंधरा ग्वालियर के राजघराने से ताल्लुक रखती हैं। 8 मार्च 1956 को मुंबई में जन्मीं राजे ने 1972 में धौलपुर के राजघराने के हेमंत सिंह से शादी की। लेकिन शादी के एक साल बाद ही दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया। बेटे दुष्यंत के जन्म के बाद वसुंधरा अपने पति से अलग होकर ग्वालियर में अपने मायके में रहने लगीं। वसुंधरा की मां विजया राजे भाजपा से जुड़ी थीं। वसुंधरा ने भी अपनी मां की तरह भाजपा पार्टी से हाथ मिलाने का फैसला किया।
वसुंधरा राजे (सोर्स- सोशल मीडिया)
वसुंधरा राजे ने 1984 में राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव भिंड से लड़ा, लेकिन अपने पहले ही चुनाव में हार गईं। राजस्थान के कद्दावर नेता भैरों सिंह शेखावत की सलाह पर उन्होंने 1985 में धौलपुर से न सिर्फ चुनाव लड़ा, बल्कि जीत भी हासिल की। इस जीत के कुछ समय बाद ही वे राजस्थान भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष बन गईं। इसके बाद वसुंधरा राजे ने राजस्थान की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनानी शुरू कर दी।
राजे ने झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। यहां से वे 9वीं (1989-91) लोकसभा से लेकर 13वीं लोकसभा (1990-03) तक लगातार पांच बार सांसद चुनी गईं। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें 1998-1999 के बीच अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया। राजे को विदेश राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया। बाद में उन्होंने एमएसएमई मंत्रालय का कामकाज भी संभाला। 2002 में भैरों सिंह शेखावत की सलाह पर वे राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हुईं। उस समय राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी।
वसुंधरा राजे ने राजस्थान की बागडोर संभाली और पूरे राज्य का दौरा कर बीजेपी कार्यकर्ताओं को संगठित किया। राजे की मेहनत का नतीजा ये रहा कि 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान में 110 सीटें जीतीं। ये राजनीतिक सफर बहुत सीधा-सादा लगता है, लेकिन सत्ता के गलियारों में पैर जमाने के लिए नेताओं को भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उस समय राजस्थान में बीजेपी के दो कद्दावर नेता थे- भैरों सिंह शेखावत और जसवंत सिंह।
राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे
पार्टी की जीत पर भैरों सिंह को उपराष्ट्रपति बनाया गया और जसवंत सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाया गया और राजस्थान को वसुंधरा राजे के रूप में पहली महिला मुख्यमंत्री मिली। इसके बाद राजे 2013 में भी राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह भी राजनीति में हैं और उनका अपने पिता हेमंत सिंह से लंबे समय से संपत्ति विवाद चल रहा था। 2007 में दोनों के बीच समझौता हो गया था।
साल 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद एक बार फिर कयास लगाए जा रहे थे कि वसुंधरा राजे राज्य की मुखिया बनेंगी। लेकिन पर्ची में भजनलाल शर्मा का नाम लेकर पहुंचे राजनाथ सिंह ने पर्ची राजे के हाथ में थमा दी। जिसे खोलते ही ‘महारानी’ की हवाइयां उड़ गईं। हालांकि वह राज्य की सीएम न होने के बावजूद राजस्थान की राजनीति में मजबूत पकड़ रखती हैं।