पांडुरंग शास्त्री आठवले (सोर्स: सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: पांडुरंग शास्त्री आठवले जिन्हें ‘दादा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे एक महान भारतीय समाज सुधारक, चिंतक और अध्यात्मिक नेता थे। उनकी आज 104वीं जयंती है। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1920 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में हुआ था। उन्होंने जीवनभर मानवता और समाज को नई दिशा देने का काम किया और “स्वाध्याय आंदोलन” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत और सामाजिक विकास के लिए आत्मचिंतन और अध्यात्मिकता को बढ़ावा देना था।
पांडुरंगशास्त्री आठवले के जन्मदिन को ‘मनुष्य गौरव दिन’ के रूप में मनाया जाता है। पांडुरंग शास्त्री ने पारंपरिक शिक्षा के साथ ही सरस्वती संस्कृत विद्यालय में संस्कृत व्याकरण के साथ न्याय, वेदांत, साहित्य और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसाइटी मुंबई द्वारा मानद सदस्य की उपाधि से सम्मानित किया गया।
पांडुरंग शास्त्री आठवले ने हिंदू धर्म के ग्रंथों का गहरा अध्ययन किया और उनका उपयोग समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए किया। उनका मानना था कि हर व्यक्ति के भीतर ईश्वर का निवास है, और अगर हम अपने भीतर के देवत्व को पहचान लें, तो समाज में समरसता और सहयोग का वातावरण बन सकता है। उन्होंने ‘योगेश्वर कृष्ण’ की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया और अपने अनुयायियों को आत्मचिंतन, आत्मनियंत्रण और समाज सेवा के मार्ग पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित किया।
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पांडुरंग शास्त्री ने स्वाध्याय आंदोलन के जरिए लाखों लोगों को जीवन का नया दृष्टिकोण दिया और सामाजिक बुराइयों, जैसे जातिवाद, आर्थिक असमानता, और धार्मिक विभाजन के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका आंदोलन न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में फैल गया, खासकर उन देशों में जहां भारतीय प्रवासी रहते हैं।
पांडुरंग शास्त्री आठवले को अपने कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1988 में उन्हें महात्मा गांधी पुरस्कार, 1997 में टेम्पलटन पुरस्कार, 1999 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला है।
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पांडुरंग शास्त्री आठवले का योगदान न केवल भारतीय समाज के लिए अद्वितीय है, बल्कि उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। उनका निधन 25 अक्टूबर 2003 को हुआ, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी लाखों लोगों के दिलों में जीवित हैं।