डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस साल यानी 2025 में 100 वर्ष पूरे होने जा रहे है। 30 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी RSS मुख्यालय पहुंचे। अपनी सुदीर्घ यात्रा में संघ ने आदर्श, अनुशासन, सामाजिक एवं व्यक्ति निर्माण के कार्य में नित नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। अपनी इस यात्रा में संघ कहीं रुका नहीं, निरंतर गतिमान रहा। समय के साथ हमेशा कदमताल करता रहा। हम आज आरएसएस के बारे में इसलिए बात कर रहे है क्योंकि, आज यानी 1 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक की जयंती हैं।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के रहे डॉ. हेडगेवार को अंग्रेजी हुकूमत से नफरत थी। उनमें अपनी माटी और देश से प्रेम-भाव उत्पन्न होने में समय नहीं लगा, उनको अपने समाज के प्रति गहरी संवेदनशीलता थी जो इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के 60 वर्ष पूर्ण होने पर बांटी गई मिठाई को स्वीकार ना करने से ही स्पष्ट पता लग जाता है।
भारत को हिन्दु राष्ट्र बनाने के सपने के साथ राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ की स्थापना हुई थी। RSS की स्थापना के जो दस्तावेज मौजूद हैं उनके अनुसार हिन्दुवादी सोच से भरे हुए MBBS डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार के मन में एक हिन्दुवादी संगठन बनाने का विचार आया था।
नागपुर में अपने घर पर 17 लोगों की एक बैठक में डॉ. हेडगेवार ने सबसे पहले आरएसएस की स्थापना का विचार रखा था। उस समय की बैठक में डॉ. हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बाला ही हुद्दार एवं बापूराव भेदी जैसे प्रमुख लोग शामिल हुए थे।
इस बैठक में तय हो गया था कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मुहिम चलाने के लिए एक संगठन बनाया जाएगा। यह बैठक 25 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन की गई थी। इसी वजह से आरएसएस की स्थापना की तारीख 25 सितंबर 1925 मानी जाती है।
25 सितंबर 1925 का बने हिन्दुवादी संगठन को 17 अप्रैल 1926 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानि RSS का नाम मिला। 17 अप्रैल 1926 को ही डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को RSS का पहला सरसंघचालक चुना गया। आगे चलकर आरएसएस के पहले प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार डॉ. हेडगेवार के नाम से प्रसिद्ध हुए। 1925 में असतित्व में आया RSS नामक संगठन आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन चुका है।
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डॉ. हेडगेवार कहते है कि उन्होंने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में व्यक्तिगत रूप से भाग लिया था, न कि आरएसएस के सदस्य के तौर पर। उनका उद्देश्य आरएसएस को राजनीतिक क्षेत्र से दूर रखना था। हेडगेवार की जीवनी के अनुसार, जब महात्मा गांधी ने 1930 में नमक सत्याग्रह शुरू किया, तो उन्होंने हर जगह सूचना भेजी कि आरएसएस सत्याग्रह में भाग नहीं लेगा। हालांकि, संघ को जो स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से इसमें भाग लेना चाहते थे, उन्हें मना नहीं किया गया।