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कॉन्गो सिविल वॉर में 40 विद्रोहियों को खुकरी से उतारा था मौत के घाट, ऐसी है परमवीर गुरबचन सिंह सलारिया की वीरगाथा

हमारे देश के वीर सैनिकों ने अपने देश के साथ-साथ दूसरे देशों पर छा रहे संकट के बादल को छाड़ा है, आज हम याद करों कुर्बानी के इस अध्याय में ऐसे ही एक परमवीर कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया के वीरगाथा के बारे में जानेंगे। जिन्होने अकेले ही 40 विद्रोहियों को खुकरी से मार गिराया था।

  • By शुभम पाठक
Updated On: Aug 09, 2024 | 03:31 PM

कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया

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नवभारत डेस्क: हमारे भारत के वीर सैनिकों ने अपने देश तो देश बाकी के अन्य देशों पर भी आने वाले संकट के बादल को उड़ाया है। ऐसी ही कहानी है हमारे देश के परमवीर कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया की। जिन्होंने कॉन्गो सिविल वॉर में अकेले की 40 विद्रोहियों को खुकरी से मार गिराया और कॉन्गो पर मंदरा रहे संकट को दुर भगाया।

समय जून 1960 का था जब, कांगों गणराज्य बेल्जियम के शासन से आजाद हो चुका था, लेकिन जुलाई में ही उस पर गृहयुद्ध मंडराने लगा। कॉन्गोलीज सेना में विद्रोह हो गया। गोरों और कालों के बीच शुरू हुआ यह विद्रोह हिंसक हो चुका था। बेल्जियम ने गोरों की मदद के लिए सेना भेज दी। कांगो के दो इलाकों पर विद्रोही फौज ने कब्जा कर लिया। और सरकार ने 14 जुलाई 1960 को संयुक्त राष्ट्र से मदद की गुहार लगाई।

परमवीर सलारिया ने दुश्मनों के छुड़ाएं छक्के

जानकारी के लिए बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने शांति अभियान के लिए कई देशों की सेनाएं भेज दीं। मार्च से लेकर जून 1961 में ब्रिगेडियर केएएस राजा के नेतृत्व में 99वें इन्फैन्ट्री ब्रिगेड के 3000 जवानों के साथ कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया भी कॉन्गो पहुंच गए। इस बीच संयुक्त राष्ट्र ने कई बार समझौते के प्रयास किए जो बेकार गए। फिर संयुक्त राष्ट्र शांति सेना को बल प्रयोग करने का आदेश दे दिया गया। जिसके बाद काटंगा विद्रोहियों ने पूरे शहर में रोड ब्लॉक्स बना रखे थे और वन गोरखा राइफल्स के मेजर अजीत सिंह को पकड़ उन्हे मौत के घाट उतार दिया।

ये भी पढ़ें:-27 जवानों के साथ 600 चीनी सैनिकों के छुड़ाए थे पसीने, कुछ ऐसे मौत को चकमा देकर भारत लौटे थे परमवीर धनसिंह थापा

जहां 4 दिसंबर 1961 संयुक्त राष्ट्र की सेना ने ऑपरेशन उनोकट शुरु कर दिया। 5 दिसंबर 1961 को वन गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन को रोड ब्लॉक्स हटाने का काम सौंपा गया। इन रोड ब्लॉक्स के आसपास 150 काटंगा विद्रोहियों ने घात लगा रखी थी। पहले प्लान था कि चार्ली कंपनी के मेजर गोविंद शर्मा हमला करेंगे। अल्फा कंपनी के एक प्लाटून के साथ कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया थे एयरपोर्ट की सड़क के पास तैनात थे।

परमवीर सलारिया ने संभाला मोर्चा

चलिए अब आपको पूरी कहानी बतातें है, समय दोपहर का था जब रोड ब्लॉक्स को हटाने की जिम्मेदारी अल्फा कंपनी को दी गई। कैप्टन सलारिया और उनके साथी जवान मौके पर पहुंच गए। पहले उन्होंने अपने रॉकेट लॉन्चर से विद्रोहियों के दो बख्तरबंद वाहनों की धज्जियां उड़ाईं।

उसके बाद रेडियो पर संदेश दिया कि मैं जा रहा हूं उन पर हमला करने। जीत हमारी होगी और फिर सलारिया आयो गुरखाली का युद्धघोष करते हुए दुश्मनों पर टूट पड़े। जानकारी के लिए बता दें कि सलारिया और उनके साथियों ने खुकरी के हमले से ही 40 विद्रोहियों को मार डाला ये देखकर बाकी विद्रोही भाग निकले लेकिन इस दौरान विद्रोहियों की फायरिंग से निकली दो गोलियां सलारिया के गर्दन को चीर गईं। विजय तो हासिल हो चुकी थी, लेकिन भारत मां का एक और लाल शहीद हो चुका था।

ये भी पढ़ें:-गोलियां खत्म होने के बाद खंजर से करते रहे दुश्मनों पर वार, ऐसी ही जिद से करम सिंह ने जीती थी जंग

प्रारंभिक जीवन पर एक नजर

जानकारी के लिए बता दें कि 29 नवंबर 1935 को अविभाजित भारत के पंजाब जो कि अब पाकिस्तान में है पैदा हुए थे, एलिजाबेथ विले कांगों में पांच दिसंबर 1961 को उनके साहस शौर्य और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हे मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया और वो भारत के परमवीर कहलाए।

40 rebels were killed with a khukri such is the heroic tale of paramveer gurbachan singh salaria

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Published On: Aug 09, 2024 | 06:02 AM

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