भगवद् गीता में ध्यान का महत्व (सौ.सोशल मीडिया)
World Meditation Day 2024: आज दुनियाभर में विश्व ध्यान दिवस मनाया जा रहा है यह दिन ध्यान को जीवन में शामिल करने और इसके फायदों के बारे में बताता है। ध्यान को पौराणिक ग्रंथों जैसे पतंजलि के योगसूत्र से लेकर भगवद् गीता में समाहित किया गया है। जीवन में तनाव और बीमारियों से दूर रखने के लिए ध्यान काफी मददगार होता है। फोकस का नाता ध्यान से जुड़ा हुआ है। भगवद् गीता में ध्यान को लेकर कई बातें बताई गई है जिसे करने से व्यक्ति खुद को मजबूत बना सकता है।
यहां पर भगवद् गीता के अनुसार, ध्यान एक योगक्रिया की भांति है जिसे करने से आपकी आंतरिक स्थिति बेहतर होती है। ध्यान को करने से आत्म अनुशासन बढ़ता है तो वहीं पर निरंतर अभ्यास करने से एकाग्रता बढ़ती है। अगर आप सुबह के समय ध्यान लगाते है मानसिक स्थिरता और संतुलन बढ़ता है। किसी भी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए आप नियमित ध्यान का सहारा ले सकते है।
ध्यान वह योग क्रिया होती है जिसके जरिए सिद्धि की प्राप्ति की जाती है इसके द्वारा आपके मानसिक और शारीरिक स्थिति बेहतर बनती है। भगवद् गीता के पांचवें और छठवें अध्याय में दरअसल योग करने की सही विधि बताई गई है। इसे लेकर स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि, मन और इंद्रियों पर कंट्रोल करने के लिए ध्यान करना सही है।
हेल्थ की खबरें जानने के लिए क्लिक करें –
यहां पर भगवद् गीता में ध्यान करने की सही विधि का उल्लेख किया गया है। चलिए जानते हैं विधि के बारे में…
1- गीता के अनुसार, ध्यान करने के लिए सबसे पहले किसी शुद्ध स्थान पर आसन बिछाकर बैठना चाहिए। हालांकि इस बात का ध्यान रखें कि, ना ही स्थान बहुत ऊंचा हो और ना ही बहुत नीचे। आसन पर बैठने के बाद अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करनी चाहिए और इंद्रियों और मन को नियंत्रिण में लाने का अभ्यास करना चाहिए।
2- इसके बाद गीता में बताया गया है कि, ध्यान करने के लिए सिर व गले को समान और अचल रखते हुए सुखासन में योगी को बैठना चाहिए। बाहरी चीजों से ध्यान को हटाकर नासिका के अग्र भाग यानि दोनों भौहों के बीच में लगाना चाहिए।
3- तत्पश्चात सभी प्रकार के विषयों से मन को हटाकर नेत्रों को भृकुटी के मध्य में स्थिर करने का प्रयास करना चाहिए। इसके बाद प्राण और अपान वायु को सम करना चाहिए।
4-इसके बाद मन के सभी विकारों से दूर होकर, उत्तेजनारहित और शांति के साथ ध्यान और ईश्वर के चिंतन में बैठे रहना चाहिए। इस तरह से निर्मल और निर्विकार व्यक्ति परमतत्व का ध्यान करते हुए आनंद की अंतिम सीमा को प्राप्त करता है और उसे शांति मिलती है।
यहां पर अगर आप गीता के नियम के अनुसार ध्यान लगाते है तो मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। यहां पर अगर आप ध्यान लगाते है तो मानसिक शक्ति की प्राप्ति होती है। ध्यान लगाने से एकाग्रता बढ़ती है हम अपना शतप्रतिशत अपने लक्ष्य को दे पाते हैं। इसके साथ ही एक आदर्श और व्यवस्थित समाज भी ध्यान के जरिए हम स्थापित कर सकते हैं।ध्यान मानसिक और शारीरिक विकारों को दूर करता है, यानि स्वस्थ जीवन जीने के लिए भी ध्यान करना अति आवश्यक है।