War Trauma Syndrome: इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है जहां पर हर कोई युद्ध की दस्तक से खुद को सतर्क कर रहा है। युद्ध, देशों के बीच जहां पर आक्रमक होता है वहीं पर इसका असर दिल और दिमाग पर पड़ता है। अक्सर युद्ध के बाद कई प्रभावित लोग एक प्रकार के सिंड्रोम से ग्रस्त हो जाते है जिन्हें बाहर निकालना इतना आसान नहीं होता है। इस सिंड्रोम में डर और तनाव की स्थिति का असर दिमाग पर पड़ता है।
वॉर ट्रॉमा सिंड्रोम एक प्रकार का मानसिक विकार होता है जो दिमाग पर बुरी तरह से असर करता है। किसी भी बड़े हादसे और युद्ध की स्थिति में व्यक्ति को प्रभावित करता है। इस सिंड्रोम की स्थिति में जब इंसान जान का खतरा महसूस करता है या अत्यधिक हिंसा का गवाह बनता है उस समय इस प्रकार का सिंड्रोम प्रभावित करता है। इस ट्रॉमा की स्थिति में तनाव, अवसाद, बैचेनी और नींद कमी को महसूस करता है।
इस वॉर सिंड्रोम की स्थिति में पीड़ित में कई तरह के लक्षण नजर आते है। इस दौरान बार-बार डरावने सपने आने लगते है तो वहीं पर किसी भी आवाज या घटना को सुनकर अवसाद में चले जाते है। युद्ध का असर सबसे ज्यादा दिमाग पर पड़ता है इस स्थिति में हिंसक या आत्मघाती विचार भी कभी-कभी आने लगते हैं।
इस ट्रॉमा सिंड्रोम की चपेट में वैसे तो कई लोग आ जाते है लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर सैनिकों में नजर आता है। इसके अलावा युद्ध क्षेत्र या नियंत्रण रेखा के पास रहने वाले लोग सबसे ज्यादा वॉर के दर्द में होते है।कई बार यह असर युद्ध खत्म होने के बाद भी सालों तक बना रहता है।
इस वॉर ट्रॉमा सिंड्रोम की स्थिति से निपटने के लिए आपको मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से बातचीत करना जरूरी होता है। इसके अलावा पीड़ित के परिवार और दोस्तों का साथ इस मुश्किल वक्त में मदद करता है। इसके अलावा दिमाग पर किसी प्रकार की अशांति ना रहे इसके लिए ध्यान या योग का सहारा लें।
दरअसल वॉर ट्रॉमा सिंड्रोम को आप एक साइलेंट किलर मान सकते है जो इंसान को अंदर से खत्म करता है। दिमाग पर असर डालने के साथ गहरे घाव भी छोड़ देता है।
युद्ध के बाद मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए और पीड़ितों को समय रहते सही इलाज और सहारा मिले।