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किडनी फेलियर से बचाएगा BHU का नया शोध, पालीसिस्टिक किडनी रोग के 95 डीएनए वैरिएंट्स का हुआ खुलासा

BHU Scientists PKD Discovery: BHU के वैज्ञानिकों ने पालीसिस्टिक किडनी रोग (PKD) के लिए जिम्मेदार 95 डीएनए वैरिएंट्स की पहचान की है, जिससे किडनी प्रत्यारोपण और इलाज अब और सटीक होगा।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Dec 20, 2025 | 10:43 AM

पालीसिस्टिक किडनी रोग (सौ.सोशल मीडिया)

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New Genome Variants Kidney Disease: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) एक बार फिर चिकित्सा शोध के क्षेत्र में दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बना है। बीएचयू के आनुवंशिक विकार केंद्र (Centre for Genetic Disorders) के वैज्ञानिकों ने पालीसिस्टिक किडनी रोग (PKD) को लेकर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। शोधकर्ताओं ने इस लाइलाज बीमारी के लिए जिम्मेदार 35 प्रतिशत नए जीनोम वैरिएंट्स की पहचान की है। यह खोज न केवल बीमारी के कारणों को समझने में मदद करेगी, बल्कि भविष्य में इसके सटीक उपचार का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

क्या है पालीसिस्टिक किडनी रोग (PKD)?

पालीसिस्टिक किडनी रोग एक आनुवंशिक विकार है, जिसमें किडनी के अंदर तरल पदार्थ से भरी कई छोटी-छोटी गांठें (Cysts) बनने लगती हैं। जैसे-जैसे इन सिस्ट का आकार और संख्या बढ़ती है, किडनी का आकार असामान्य रूप से बढ़ जाता है। इसका सीधा असर किडनी की कार्यक्षमता पर पड़ता है, जिससे अंततः किडनी फेल हो जाती है। आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में किडनी फेलियर के लगभग 5 प्रतिशत मामलों के पीछे यही मुख्य कारण होता है।

बीएचयू के शोध में क्या हुआ खुलासा?

प्रो. परिमल दास के नेतृत्व में शोधार्थी डॉ. सोनम राज, डॉ. चंद्रा देवी और जितेंद्र कुमार मिश्रा की टीम ने पीकेडी के लिए जिम्मेदार दो मुख्य जीनों—PKD-1 और PKD-2 का गहन अध्ययन किया। शोध में कुल 95 डीएनए वैरिएंट्स (उत्परिवर्तन) की पहचान की गई है।

अध्ययन के अनुसार, पीकेडी-1 जीन में 67 वैरिएंट्स और पीकेडी-2 जीन में 29 वैरिएंट्स पाए गए हैं। इनमें से 64 प्रतिशत वैरिएंट्स के बारे में पहले से जानकारी थी, लेकिन 35 प्रतिशत वैरिएंट्स पूरी तरह नए हैं। इस महत्वपूर्ण शोध को वैश्विक स्तर पर मान्यता देते हुए ‘एल्सेवियर’ और ‘टर्किश जर्नल ऑफ नेफ्रोलाजी’ जैसे ख्यात जर्नल्स में प्रकाशित किया गया है।

मरीजों को कैसे मिलेगा इस शोध का लाभ?

प्रो. परिमल दास ने बताया कि इन नए डीएनए वैरिएंट्स की पहचान से रोग के आनुवंशिक पूर्वाग्रहों को सटीक रूप से परिभाषित किया जा सकेगा। इसके सबसे बड़े लाभ निम्नलिखित हैं:

किडनी डोनर का सटीक मिलान: जेनेटिक मैपिंग के जरिए आनुवंशिक रूप से सबसे उपयुक्त किडनी डोनर खोजने में मदद मिलेगी, जिससे ट्रांसप्लांट सफल होने की संभावना बढ़ेगी।

जोखिम का शुरुआती आकंलन: जिन परिवारों में पीकेडी का इतिहास है, वहां बच्चों या युवाओं में बीमारी शुरू होने से पहले ही खतरे का पता लगाया जा सकेगा।

व्यक्तिगत उपचार (Personalized Medicine): यह शोध भविष्य में प्रत्येक मरीज के डीएनए प्रोफाइल के आधार पर अलग और सटीक इलाज विकसित करने में मदद करेगा।

ये भी पढ़ें- सावधान! क्या आप भी छोटे-मोटे लक्षण गूगल पर करते है सर्च, बन सकता है जानलेवा, याद रखिए की चेतावनी

जानिए बचाव के ये जरूरी उपाय

शोधकर्ताओं के अनुसार, पीकेडी के लक्षण अक्सर 30 से 40 वर्ष की आयु तक स्पष्ट नहीं होते। हालांकि, सही जीवनशैली से इसकी गंभीरता को कम किया जा सकता है। विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि:

  • दिन भर में कम से कम 3 से 4 लीटर पानी पिएं और कैफीन (चाय-कॉफी) से बचें।
  • ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें और किसी भी संक्रमण का तुरंत इलाज कराएं।
  • धूम्रपान छोड़ें, नमक का सेवन कम करें और नियमित व्यायाम करें।
  • संपर्क वाले खेलों (Contact Sports) से बचें जिनसे किडनी को चोट लगने का खतरा हो।

यह शोध न केवल बनारस बल्कि पूरी दुनिया के नेफ्रोलाजी विभाग के लिए एक बड़ी उम्मीद लेकर आया है। अब आनुवंशिक जांच के जरिए किडनी की इस गंभीर बीमारी को समय रहते काबू करना संभव हो सकेगा।

Bhu scientists identify new genetic variants for polycystic kidney disease

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Published On: Dec 20, 2025 | 10:43 AM

Topics:  

  • Health News
  • Lifestyle News
  • World Kidney Day

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